चौको न बस सोचो ज़रा ये क्या हो गया
संचित सदा की एकता का साख खो गया
कैसी घड़ी , समय दुखद , मानव संघार का
थी स्वागताकांक्षी धरा दानव चिग्घाड़ का ॥ १॥
घटना न कभी ऐसी स्वतंत्र हिंद में हुई
रो पड़े जिसने भी उस हालत को सुनी
आँखे खुली थी जिनकी वो भी सूर हो गए
कितने लड़े, शहीद, हिंद-ऐ-नूर हो गए ॥ २॥
पर वो रहे डकारते खा खा के पूरियां
पहुंचे न क्षति , बनाए रखे ऐसी दूरियां
जब तक कि बात उठती गोलियां बरस गयी
अपने बिरन को लखने को अखियाँ तरस गयी ॥ ३
फ़िर वो लगे फुदकने कायरों ही की तरंह
अवशेष ढूँढने लगे , आतंक की वजह
कुछ हो तो मिले खैर राजनीती ही सही
कम्युनिस्टों ने कह ही दिया जो कोई ना कही ॥ ४॥
अब तक तो लड़े जान हथेली पे रखके यूँ
मानो न उनका कोई , देश ही है सब कछू
पर देश के गद्दारों नें ये क्या कर दिया
उनके शहीद होने पर , सवाल जड़ दिया ॥ ५॥
ऐसी बनाओ नीति ना कुनीति पर चलो
जिस देश में हो रहते उस देश की कहो
कितने जगंह मनाओगे शहीदी दिवस को
हरेक जगंह रही गर जिंदगी सिसक तो ॥ ६॥
चलेगा न काम धुप , अगर, माल से
आतंक का जवाब दो आतंकी ताल से
हम हैं भला कमजोर वो सहजोर ही कहाँ
भाग जाय सब छोड़ , एक हिलोर हो जहा ॥ ७॥
तबतो मजा है , आनंद इस जलसे जुलूस का
हम स्वाद भी चखा दे दर्दे जूनून का
इक बार गर "सरकार " तूं तैयार हो गया
समझो वतन स्वर्ग का 'घर द्वार ' हो गया