है युग कलयुग नाम अपारा । सुमिरत भागत सुख संसारा ॥
जौ केहु चाह सदा लड़खड़ाना । कलयुग नाम जपहूँ प्रभु जाना ॥
बिन कलयुग के झगड़ा ना होई । मूरख गदहा दलिद्र कह सोयी ।.
अन्दर सास पतोहू के रहता । करत रहत सबके मुंह भरता ॥
बेटवा बोलै जौ गुस्साई । मेहर खीझि के चिमटा चलाई ।।
आवै बीच जे झगड़ा छुड़ावै । आखें चार के अपजस पावै ॥
कलयुग नाम सुखम् सुख हारी । तां जनता सब रहै दुखारी ॥
गली नगर बाजार दुवारी । जंह देखा तंह कलयुग भारी ॥
डालहुं नजर तनी लड़किन पर । कलयुग झलकत हर आत्मन तर ॥
पहिन ब्रीफ और केश झुलाई । देत अहैं सेफ्टी कै दुहाई ॥
पाछे कुत्ता लाखन दौडें । रहि रहि यौवन देखि के घिउरें ॥
जस अपजस लागत नहीं देरी । सैंडल रक्षा करै घनेरी ॥
जैसे सैंडल लडकी उडावई । सब लडिकन तब भाग्य अजमावई ॥
यह सब कलयुग की मनुसाई । लडकी लड़का दिखै इक छाईं ॥
बाल रखाई औ मूछ मुडाई । लगै सदा हिजड़ा सम भाई ॥
वहीँ पर पौडर वा होठलाली । देखि समाज देइ सब गाली ॥
पर गारी के शोक ना होई । कलयुग कहै डरो नहीं कोई ॥
एक दिन दुइ चर झापड़ पड़ता । सब किहें तब करता धरता ॥
अगलेन दिन बस जेल दुवारी । जल्दिन होइबा बेस्ट भिखारी ॥
हमरे रहे कुछ चिंता नाहीं । रहबे देत बबूल के छाहीं ॥
2 टिप्पणियां:
it's really lovely
kya vyang ksa hai aap ne
bahut achche
rakesh kaushik
waah...bahut achchja likha.
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