रे दुःख की दूतिनी
फ़िर तूं लौट कर आई यहाँ
अभी अभी
बस थोड़े समय पहले
छोड़ आया था तुझको
अपनी बगल वाली गली में
पर ये क्या
फ़िर घूम कर चली आयी
ओह ! तूं कितनी निर्दयी है
कितनी बेसरम है
लेस मात्र भी दया और सरम नहीं
उनके पास क्यों नहीं जाती
जिनके घर है मेवा मलाई
शायेद इसीलिए न
वे नहीं करते तेरी मेहमानी
हम गरीब हैं
अतिथि को देवो समान मानते हैं
चाहे वो विपदा हो या दुःख
अथवा खुशी
सबको एक समान समझते हैं
इसीलिए तो झेल रहे हैं
ऐसी दलिद्रताई .......... ।
1 टिप्पणी:
भावपूर्ण.
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