आत्मा दुखी मन हंस रहा है
जीवन का कुछ अनुभव पाकर
घर घर देखा हमने जाकर
रोशनी मिलती जिससे , वह दीपक
पतंगे की फडफदाहत पर तरस रहा है
कितना सुन्दर,! आह ! उदार कितना
ह्रदय पतंगे का , मृदुल व्यवहार कितना
रहा तड़पता मुझपर , नहीं मैं दिया
हक़ इसका, जितना बनता नहं लिया
इसने , हाल मेरा जस का तस रहा
किया बखान पतंगे का सबनें , देखा नहीं
वह प्यार हमने , रूप रंग पर मेरे वह
मिटता रहा , हमने तो चाह रह दिखाना
उसको रोशनी देकर , मारा वह , उलटे
मिलता मुझको ही अपजस रहा
आत्मा दुखी मन हंस रहा
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