कहते थे लोग जिनको
खिलौना खिलौना
हाथों का खिलौना
आना जाना काम था जिनका
किसी के पास सिर्फ़ मनोरंजन के लिए
वह आज बन गयी है
सबके जीवन की लकीर
जो मलिका बन गयी है
सबकी जरूरत का
पर
अपनी जरूरत
सुख समृद्धि का फकीर
उसको नहीं था आता
कभी किसी के साथ
रोना धोना
जिसको पता होता था सिर्फ़
अपनें सुख पर गाना
लेकिन आज पड़ता है उसको
सबके सुख- दुःख-गम में
अपनें नयन-नीर बहाना
अब उसे नही कहता कोई
खिलौना खिलौना
सब दोहाई देते फिरते हैं अब
बिछौना बिछौना
भाग्य का बिछौना
सिर्फ़ बिछौना बिछौना
भाग्य का बिछौना ............ ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें