उन मृदुल संबंधों की कैसे कहूं मैं कोई कहानी
जिसको व्यक्त न कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी
मन कैसे विचलित हो उठा था ,थी अधीर मेरी जवानी
पाकर क्षण -सुख , दुःख वियोग का ,भर आया आखों पानी
थी हंसी , देख निज आकर्षण में ,पागल मेरे लिए इतना
होगा ना लहर सागर से भी मिलने को आतुर जितना
अव्यक्त ,अथाह , माया से लिपटी हुई सुरु अतृप्त कहानी
जिसको व्यक्त न कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी ..
प्रत्यक्ष ही नहीं तुम यहाँ परोक्ष रूप भी आती हो
अपने कोमल - गात - स्नेह से मदमस्त हमें कर जाती हो
रोकता मन , दूर रहे छवि तेरी , बादल सा छा जाती हो
जागूं या सोऊ , ऊपर मैं , तर तुम आती जाती हो
फिर तो इस सौंदर्य गुलाम से करती रहती ऐसी मनमानी
जिसको व्यक्त न कर सकी अभी तक मृदु बानी ..
उन काले बालों की साया छाया अंचल पटु का उसके
रोक रही थी ,अवरुद्ध मार्ग था ,निर्मल ह्रदय,कटुता झुकते
तन पर वह थी ,उसपर मन था , आरी-बगल कोमल से सपने
प्रिये प्रिये उस प्रेम यग्य मे लगा ह्रदय माला से जपने
और खेल रही थी लिपटकर दोनों की नवल नादानी
जिसको व्यक्त ना कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी ..
बढ़ने दो अभी कुछ और , यूं रोको न , दो कोई ठौर
आनंद की असीमता में न आयेगा दूसरा ं दौर
अभी इसी वक्त मुझे सब कुछ पकड़ कर लेने दे
है आतुर ह्रदय मेरा कुछ और अधिक दे - लेने दे
हुई व्याकुल थी अंगुलियाँ ले - दे रही थी कोई निशानी
जिसको व्यक्त न कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी ..
मेरा मन विह्वल होता तन ऐसे सहलता जाता था
अपने कठोर हाथों से , उसके तन को मसल जब पाता था
जाती थी वह सिहर तब मजा और मुझे आता था
उसकी ना ना एक रट थी , मुझे और कुछ भाता था
पकरके स्निग्ध प्रेम को मचली ऐसे वह दीवानी
जिसको व्यक्त न कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी ..
स्तब्ध निशा थी , शांत प्रभा थी , तेज वासना का इतना
आतुरता थी हृदय मिलन की मेघ बरसने का जितना
''प्यासे तन को प्यासे मन से बरसकर हमको सिचना ह''ै
''रुको , आह ! न बढ़ो इतना कुछ अभी मुझे समझना है ''
बोली वह कुछ ऐसे जैसे कविवर कोई ग्यानी
जिसको व्यक्त न कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी
हुई शांत सांसे जैसे थमी लहर किनारे से
निराश हो उठा मन ज्यों भिखमंगा धनी द्वारे से
भभक उठी आग तन की ज्वाला जैसे फौव्वारे से
लगी तड़पने वासना जैसे चीरी गयी हो आरे से
व्रिद्धावास्था सी दयनीय , लाचार , हुई अशांत जवानी
जिसको व्यक्त न कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी ..
लगी कहने वह निश्छल '' ठहरो अभी समझना है
पागल होकर सब की तरंह नहीं यहाँ हमें उलझना है
यह काम - कामना ही नहीं सब कुछ , मुई मोह मई छलना है
वासनांचल से लिपटकर ही जीवन भर नहीं भटकना है
सोए हुए हो , जागो , देखो , करो न ऐसी नादानी
जिसको व्यक्त ना कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी ...
जिसके लिए पागल हो जगता था अभी तक रातों को
सुन्दर सोने - से सपने , रखता गर्वित जज्बातों को
सहेज रखा था जिनके लिए हसीन चाँदनी रातों को
टाल गयी पल भर में वह उन गर्वीली बातों को
उस अव्यक्त अगाध प्रेम को कह गयी मेरी नादानी
जिसको व्यक्त न कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी ..
मोह मई छलना ही था क्यों किया निमंत्रित मुझको
वशीभूत हो वासना के क्यों किया नियंत्रित खुद को
अरे ! इतना ही था सयम सम्हाला नहीं क्यों खुद को
जीवन का मर्म समझ प्यारी कैसे समझाऊँ तुझको
आ गले मिल मिल , कर तृप्त ह्रदय , चलने दे पवन सुहानी
जिसको व्यक्त न कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी ...
मिल कर गले से , हृदय के ताप सभी मिट जाने दे
जो जरूरी वस्तु है प्यारी मुझे और बस पाने दे
जाने दे उन अंत क्षणों तक , न बना कोई बहाने
''क्यों पागल - तम - निशा मे ं बिजली - सा आए रिझाने
ऐसा कह वह लगी बरसने जैसे बिन बादल पानी
जिसको व्यक्त ना कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी
जरूरी वस्तु क्या तुम्हारा क्षण भर का वह आनंद मोह
जिसमें उलझ , बर्बाद युवा , लगा सका ना कोई टोह
करते रहे हो दीन हीन माँ बाप जिंदगी भर बिछोह
खाने को दो अन्न नहीं कराह रहे हों हो दयनीय, ओह !
आती नहीं समझ तुम्हारी कैसी मद भरी जवानी
जिसको व्यक्त न कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी
वासना आकांक्षित , उद्यान अंकुरित मृत वासनामाय उपवन में
''जीवन का मर्म '' क्या यही बीते समय बस स्वप्न शयन में
सत्य यही यदि क्यों न फिर हो जन्म श्वान योनी में
क्यों कलंकित करे आर्य को हो उत्पन्न मानस योनी में
इससे तो अच्छा यही , हो प्रवृत्ति हमारी शैतानी
जिसको व्यक्त न कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी ..
माना दलदल यह ऐसा जहाँ नहीं सका बच कोई
काम-वासना विधि-विधान श्रृष्टि का नहीं प्रवंचना कोई
फिर भी वासनामय असुर से तुम्हें अभी लड़ना होगा
जो नहीं सका कर कोई उम्र भर , तुम्हे सभी करना होगा
ताकि उज्जवल रहे चरित्र जैसे निर्मल पानी
जिसको व्यक्त न कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी
कमल-सेज से , करो विगत मन , पुष्पित तन के मोह से
दग्ध हृदय ताकि न हो प्रिय के मिलन - विछोह से
कर्म - कार्य में आत्मीयता काम - वासना से हो वंचित
करो तुम आलिंगन मेरा , अपने ह्रदय को भी अभिशिंचित
जिससे नवीन मानचित्र पर हो , पुनः परिभाषित जवानी
जिसको व्यक्त ना कर सकी अभी तक मेरी मृदु बानी ....
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