लाल लाल लाल धरा का लाल आ गया है
प्रगति का उन्नति का नव भूचाल आ गया है
सुधरों ऐ पूजीपतियों सम्हालो स्वयं को
न समझो ये भ्रष्टाचार का कोई दलाल आ गया है
और ना ही तो कूराकर्कत का कोई जंजाल आ गया है
निचोड़कर खाए हो जिसके चामों को अभी तक
भूख से चरमराता वही कंकाल आ गया है
समझो तुम्हारे ऐय्यासी पर मंडराता तुम्हारा काल आ गया है
क्योंकि प्रगति का उन्नति का नव भूचाल आ गया है ....... .
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चल रहा था बेचैन हवा इस कदर
बह रहा था कहीं मै इधर कुछ उधर
उठा एक झोंका कि बस सबर खा गये
थोड़ी देर के लिए ही सही , कहीं गुजर पा गये
बंद हुआ जब चलना हवा, तो सोंचा ,हम कहाँ आ गये
और पहुंचा जब यहाँ तो लगा घर आ गये
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कितने लोग हमारे लिए इतने आत्मीय होते हैं
बड़े होकर भी , हम उनके लिए छोटे हैं
पता नहीं वे हमको याद करते हैं कि नहीं
हम तो उनके ख्यालों में अब भी रो लेते हैं ................ .
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