याद न कर मन और अब , याद रहे ना कोय
जे मन उलझा याद में , याद गये ना कोय ....
आंसू पानी एक सम , एक प्राण दो रूप
एक रहे जीवन सरल , एक रहे नर - रूप ......
मन क्यों मन से दूर है , मनन का है फेर
मन मांगे मन ना मिलै , मन का है अंधेर .. ..
ध्यान रहा निज रूप का , मन का सुनी गुहार
रूप घटा यौवन ज़रा , फीका मन का द्वार .....
हार न माँ बढ़त चल , सब जग निज घर द्वार
सब संग प्रेम बढाय के , हो जा गले का हार .....
गिरत बूँद मन होत खुश , बूँद गिरे दुख धोय
बूंदन की महिमा बहुत , सागर पूरित होय ......
प्यासी धरती धधक कर , नभ से मांगी तोय
जे नभ बरसा गरजकर , होत ख़ुशी सब कोय .....
1 टिप्पणी:
बहुत ही अच्छे सारगर्भित दोहै हैं
गिरत बूँद मन होत खुश,बूँद गिरे दुख धोय
बूंदन की महिमा बहुत, सागर पूरित होय ......
बहुत अच्छा लगा...
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