कहीं भी किसी दिन मिलो तुम किसी से
हर एक दिन नया गम खिलता मिलेगा
दिखेगा तुम्हें वो तुम्हारा हितैसी
तुम्हीं से तुमपे वो हंसता मिलेगा
दिखेगा नया तेज व्यक्तित्व पर उसके
सुंदर बदन , मुख , चेहरा लगेगा
चाहोगे तो जानना हकीकत भी उसकी
मगर जब सुनोगे रूप तेरा ही मिलेगा
कहेगा मुसाफिर यहीं का हूँ एक मैं
नहीं घर चावल आज , आटा खतम है
झगडी है मम्मी , पापा गुस्से हैं ऊपर
पत्नी को छाया मेरी प्रेमिका का बहम है
था फ़ोन लड़के का , फीस देना है उसको
डबल कट लाइट का फक्ट्री भी है बंद
किया मिस्ड चाची नें है काल मुझको
न पैसा मोबाइल में , उधर प.सी.ओ भी है बंद
छोटी है लड़की बिस्कुट जरूरी उसे भी
बीड़ी , तम्बाकू के यहाँ लाले पड़े हैं
साबुन खतम , ना नहाया , कपडे भी है गंदे
दिए थे उधार जो , वे भी मूंछ ताने खड़े थे
भइया ! अगर कुछ हो देना मुझे आज
अभी तो कारखानें में मेरे पैसे पड़े हैं
मगर क्या पता उस विचारे को था कि
भइया भी उसी लिए पास उसके खड़े हैं
सोंचोगे प्यारे , सही कहती है ये दुनिया
शरीर है अनेकों पर आत्मा एक ही मिलेगा
अगर दुखी किसी का तन कहीं भी दिखा तो
समझो वही दुःख कल तुमको भी मिलेगा ............. ।
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