मैनें भी तो कुछ था ही सोंचा
कुछ करनें को
कुछ चाहने को
कुछ पानें को
इसके बाद स्वतः चलकर
एक अजीबों गरीब पग से
एक सबसे कमजोर पथ पर
कुछ खोनें को
सोंच सोंच ही बनीं रही
और मैनें सोंचा
कुछ जरा सा सोंच कर
सोंचकर सोंचा उस विषय में
तो पाया एक सरल सा जवाब
जो था अर्थ से तरल
जो बहुत ही नुकीली और
चुकीली थी
सोंच का जन्म सोंच में ही होता है
और वहीं संभवतः
बहुत गहरे में
हो जाता है उसका अंत
आख़िर लता भी तो सोंचा होगा
नाज किया होगा
अपनी सुन्दरता पर
की मैं भी कभी
सबके पसंद का मालिक बनूँगा
पहनाया जाऊंगा सबों के गले में
चढ़ाया जाऊंगा मंदिरों में
भगवान के गले में
नेताओं के गले में
घरों में
किसी मुख्य त्योहारों में
और
विशेष रीति-रिवाजों में
अर्थियों पर गम के साथ
लेकिन उसकी भी सोंच
सोंच ही रह गई
आज वह शोभा है
शोभायमान हो रहा है
केवल गडाहों, और तालाबों में
कोई नहीं पूंछता उसका फूल
समझते हैं लोग उसको
केवल धूल
पग अथवा पथ का नहीं
हवावों और आँधियों का धूल .......... ।
1 टिप्पणी:
Bhai anil ji
Aapne radiosabrng men meri ghzalen sun kar tareef ki.Aapka dil ki gehraiyon se shukriya.
Aapka blog dekha aapke vichar achhe lage.
Pl watch www.atulajnabi.blogspot.com
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shukriya
ATUL AJNABI 09425339940
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