भारत में आए दिन राजनेताओं की राज्नीतियाँ प्रकाश में आती रहती हैं जो काफी हद तक अंधेरे से परिपूर्ण होती हैं। उस अन्धेरमय नीति पर चलना न सिर्फ़ कठिन अपितु असंभव भी होता है , खासकर उनके लिए जिनके ऊपर ये नीतियाँ थोपी जाती हैं । हाल ही में ली गयी एक और नीति "बाल श्रम पर प्रतिबन्ध" हालांकि सुननें और सैद्धांतिक रूप में तो एक अच्छा कार्य , एक अच्छा कदम कहा जा सकता है समाज के लिए पर व्यवहार में यह उतना गलत है । एक नाइंसाफी है गरीब परिवार और असहाय बच्चों के लिए ।
पंजाब प्रदेश समेत देश के अन्य प्रदेशों में इस वैधानिक नियम को शक्ति से लागु करनें का निर्णय लिया गया है । जिसके उलंघन की दशा में ना सिर्फ़ आर्थिक दंड अपितु एक वर्ष के कारावास का भी कठोर प्रावधान किया गया है । जिससे ये होगा की जो असहाय बच्चे अपनें गरीब माता पिता की दशा को सुधारनें तथा अपनीं जीविका को चलाने के लिए किसी होटलों , कारखानों व नगर के अमीरों तथा रहीशों के यहाँ नौकरी कर लेते थे अब उनको इनसे भी वंचित होना पड़ेगा । क्योंकि इस दुनिया में मूर्ख कौन है की एक बालक को नौकरी देकर अपनीं जान संकट में डालेगा । परिणामतः उन लाचार बच्चों को तथा उनके परिवार वालों को मजबूर होकर जस्ता का कटोरा लेकर सड़कों पर उतरना होगा । आख़िर पेट भरने के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा ।
दिलचस्प बात तो ये है कि भारतीय सरकार द्वारा उन बाल मजदूरों को सौ रूपये (१००) महीनें वजीफे के रूप में देनें का निर्णय लिया गया है जो गरीबी की दशा पर एक करारा व्यंग्य है , प्रहार है । इससे तो अच्छा ये होगा कि यदि कोई बालक फटा-पुराना कपड़ा या निर्वस्त्र होकर गलियों या सड़कों पर घूमता हुआ दिखाई दे तो सीधा उसे खतम कर दिया जे या किसी गाड़ी के नीचे कुचल दिया जाय । अब भला इससे अच्छा तरीका बाल श्रम पर रोक लगानें का और क्या हो सकता है ।
देश की ३०-४० प्रतिशत जनसंख्या ऐसी है जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है जिनको रहनें के लिए छान-छप्पर , झुग्गी , खानें के लिए नमक रोटी और तन ढकनें के लिए मात्र ३ इंच कपड़े नसीब हो जाय तो बडी बात है । क्या कभी इनकी इस दशा पर उनको ख्याल आई ? क्या कभी उनके द्वारा कोई ऐसा कानून पास किया गया कि यदि नगर में कोई बालक या कोई परिवार बिना खाए पिए सोया तो बगल वाले को कठोर दंड दिया जाएगा ?नहीं किया गया क्योंकि यदि कोई ऐसा कानून लागु किया गया होता तो नुका क्या हाल होता जो ऊपर के २०% अमीर वर्ग इन पर राज कर रहे हैं ।
अतः ये बात तो स्पष्ट है कि 'बाल श्रम ' पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाना सिद्धांत में जितना ही सरल है व्यवहार में उतना ही कठिन है जिस पर वर्तमान सरकार को एक बार फ़िर गहनता से विचार करनें की आवश्यकता है । यदि तो इन प्रावविधानों को सख्ती से लागू करना है तो उन गरीबों को , उनकी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करनें का जिम्मा इनके द्वारा लिया जाना चाहिए , नहीं तो इसको वैसे ही सिर्फ़ कागजी कार्रवाई बनाकर छोड़ देना चाहिए जैसे ३०-४० सालों से किया जाता रहा है .............. ।
2 टिप्पणियां:
आपका लेख फायरफाक्स में पढ़ने में असुविधा होती है (क्योंकि अक्षर और मात्राएं अलग-अलग दिखती हैं)
इस समस्या से बचने के लिये उपाय यह है कि आप अपने टेक्स्ट को 'जस्टिफ़ाई' न किया करें। ऐसा करने से फायरफाक्स ब्राउजर में भी पढ़ने में कोई समस्या नहीं आती।
अगले पोस्ट से हम आपके इस शिकायत का पूरा पूरा ध्यान देंगे । सुझाव के लिए धन्यवाद !
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