मैनें तो सोंचा था शायेद
कुछ सुनोंगे मेरी भी बातें
होता कैसे दिन गलियों मी मेरे
वितती हैं कैसे ये रातें
किस तरंह से जीते हैं वासी यहाँ के
खाते हैं क्या वो पीते
कब कैसे बीत जाते हैं पल
किस किस के ताने बाने सुनते
मिलती कौन उन्हें सावन बूँद - सम
सताती समेटे गमांचल में अपनें
खिलती फूलों में कैसे कलियाँ काटों की
दिखने लगते हैं जब बेगानों से अपनें
है कहानी सुहानी दिलचस्प जुबानी यहाँ की
मिलो कभी फुरसत में तो बैठ सुनाएँ
बातें करेंगे अनिल (हवा) से गोधूली बेला में
तब दिखा करेंगे रंग जागरण में दहकते ................. ।
2 टिप्पणियां:
भाई मेरे, थोड़ा वर्तनी पर ध्यान दो..छापने के पहले एक बार प्रीव्यू मे पढ़ो..कोई मदद चाहिये तो बताओ..हम हैं न!!
भाव तो बहुत उम्दा है..बस, वर्तनी उन्हें दमित कर रही है. भगाओ उसे!!
श्रीमान, वर्तनी से क्या तात्पर्य है, थोड़ा कम समझ आया । कृपया विस्तार से कुछ कहें इसके विषय में !
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