सोमवार, 7 जनवरी 2008

मुस्कराहट

ग़जब की चीज है मुस्कुराहट
आ जाती है , खुद-ब-खुद

न कोई पता बगैर किसी आहट


रोता है दिल तो आती है

हंसती है महेफिल तो आती है

आती है मुस्कुराहट बेवजह
ना कोई पता बगैर किसी आहट


पर कई दिनों से
घट रहा जब सब कुछ

हो रहा जब सब कुछ

सब कुछ सहना ही रह गया

जीवन में कुछ
कोशों दूर कड़ी मुस्कुरा रही
ये स्वार्थी मुस्कुराहट
ना कोई पता बगैर किसी आहट................... ।

वह चिड़िया

वह चिड़िया


दूर से दिखती है


फर्फराते हुए उसके पंख


सुनाई देते हैं , वह लकती है


आंखों में कुछ सपने दिखाई देते हैं


सपनों को संवारने की ललक लिए


पिज़डे में पड़ीं खिड़कियों को निहारती है


वह चिड़िया



ऐसा एक दिन की नहीं


रोज रोज की कहानी हो गयी है

पहले था बचपना , पर अब सायानी हो गयी है


पिज़डा ही उसकी मंजिल, पिज़डा ही उसकी आशा


पिज़डा उसकी पहचान , पिज़डा ही उसकी भाषा


जैसा रहा बचपना वैसे ही बीती जवानी


नहीं कर पायी भेद उसमें और देखती रही सपने


वह चिड़िया ..................................... ।