गुरुवार, 10 अप्रैल 2008
मन
चिंता
यादों का टूटा तारा हूँ
यादों का टूटा तारा हूँ
रहता हूँ यादों में बिछड़कर
चाहता हूँ निकलना भी, पर
जाऊं कहाँ यादों से हटकर
छूट जाते हैं जब हम सभी से
रूठ जाते हैं जब सब हमी से
हो जाता है अँधेरा
ना कहीं कोई साथी दिखता
ना कहीं कोई सवेरा
तब दूर देश से आती एक रोशनी
सब कुछ कहते सुनते हैं
रोशनी को अपना समझकर
यादों का टूटा तारा हूँ
रहता हूँ यादों में बिछड़कर ........ ।
भाग्य का बिछौना
कहते थे लोग जिनको
खिलौना खिलौना
हाथों का खिलौना
आना जाना काम था जिनका
किसी के पास सिर्फ़ मनोरंजन के लिए
वह आज बन गयी है
सबके जीवन की लकीर
जो मलिका बन गयी है
सबकी जरूरत का
पर
अपनी जरूरत
सुख समृद्धि का फकीर
उसको नहीं था आता
कभी किसी के साथ
रोना धोना
जिसको पता होता था सिर्फ़
अपनें सुख पर गाना
लेकिन आज पड़ता है उसको
सबके सुख- दुःख-गम में
अपनें नयन-नीर बहाना
अब उसे नही कहता कोई
खिलौना खिलौना
सब दोहाई देते फिरते हैं अब
बिछौना बिछौना
भाग्य का बिछौना
सिर्फ़ बिछौना बिछौना
भाग्य का बिछौना ............ ।