सोमवार, 7 जनवरी 2008

वह चिड़िया

वह चिड़िया


दूर से दिखती है


फर्फराते हुए उसके पंख


सुनाई देते हैं , वह लकती है


आंखों में कुछ सपने दिखाई देते हैं


सपनों को संवारने की ललक लिए


पिज़डे में पड़ीं खिड़कियों को निहारती है


वह चिड़िया



ऐसा एक दिन की नहीं


रोज रोज की कहानी हो गयी है

पहले था बचपना , पर अब सायानी हो गयी है


पिज़डा ही उसकी मंजिल, पिज़डा ही उसकी आशा


पिज़डा उसकी पहचान , पिज़डा ही उसकी भाषा


जैसा रहा बचपना वैसे ही बीती जवानी


नहीं कर पायी भेद उसमें और देखती रही सपने


वह चिड़िया ..................................... ।

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