गुरुवार, 29 सितंबर 2011

विद्रोही तारा हूँ मैं

जिंदगी के उहापोह में 
सुख के चाहत और 
दुःख के टोह में
निकला हुआ घर से 
रजिस्टर्ड आवारा हूँ मैं 

घूमा करता हूँ दिन भर 
टहला करता हूँ 
समझे न कोई फ़ालतू मुझे 
किसी गली में सम्हलकर
प्रायः निकला करता हूँ मैं 

कोई समझे न समझे 
यहाँ सबका प्यारा हूँ मैं 

चमकते सितारों का साथी रहा मैं भी कभी 
आज उनके गोल से निकला 
बिछुड़ा हुआ उनसे 
विद्रोही तारा हूँ मैं 
खो चूका हूँ तेज अपना 
वह सुख पुराना ,आज  सपना 
कह नहीं सकता कौन साथ है 
पहुंचाएगा गंतव्य स्थल तक 
निहायत ही दीन हीन 
किस्मत का मारा हूँ मैं ..... 

बुधवार, 28 सितंबर 2011

फिर वही रास्ते मिले

फिर 
वही रास्ते मिले 
मोड़ वही 
गुजरते थे जहां से 
कुछ दिनों पहेले भी 
वही दूब
कंकर वही 
भूमि वही 
बंजर परी
वही रास्ते 
ईंटो के खडंजे 
मिट्टियों की बनी 
दिख रहे हैं 
वही का वही 

पर 
हम बदल गये 
विचार हमारे
व्यवहार हमारे
जो रहा करते थे 
नहीं रहे वही 

क्या बदलेंगे वे रास्ते भी 
जो अब भी पड़े हैं 
वहीं के वहीँ 
जहां से हम चलते थे 
खड़े जो अब भी 
दिख रहे 
वहीं का वहीं ........

"दुःख सबको माजता है "

गम
किसे नहीं है
दुःख
कहाँ नहीं है
कौन है सुखी
कह नहीं सकता
सम्पन्नता आखिर कहाँ है
कह नहीं सकता
समझ सकता हु
पर
दुखी सब हैं
कोई दुःख को दूर करने के लिए
सुख के सुखत्व से परसान होकर कोई
दुखी है
सब जन
सब जगह
सब तरीके से
इस धरती पर रहने के लिए
पाने के लिए
कमाने के लिए
एक दुनिया बसाने के लिए
सुख की
चाहत की
महेफिल एक सजाने के लिए
दुखी हैं सब
क्योंकि
"दुःख सबको माजता है "
कहा कहा था किसी ने

शनिवार, 30 जुलाई 2011

मिट जायेगी एक दिन ये काली अँधेरी ...

चुप हूँ , मौन हूँ, बेबसी है मेरी

इस छोटे से जीवन में विपदा घनेरी

घनेपन में निकालूँगा रास्ता एक ऐसा

मिट जायेगी एक दिन ये काली  अँधेरी


निकलेगा चाँद अभिनव रोशनी को संग ले

टिमटिमाते तारों से धरती ये जगमगा जायेगी

दौड़ता हुआ आएगा सूरज भी एक दिन

बजेगी   संवादों   की   भेरी    जब    मेरी  


ऐसा भी न सोंचो कि बाते ख़तम हैं

ढा रहा खुदा जिस कारण सितम है

बातें तो बहुत हैं हाले इस दिल में

पर क्या करें कि समय से हम तोड़े  हुए है

रख रख के थोडा थोडा नीबू की तरह

सब के सम्मुख आज हम निचोड़े हुए हैं


एक दिन फिर रस का संचार होगा 

फ़िदा मेरे ऊपर सारा बाजार होगा 

पड़े रह जायेंगे सब कीमती दम वाले 

खुल जायेंगे अकलों के पिटारे  जब मेरी  

बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

दीप की बेबसी

आत्मा दुखी मन हंस रहा है 


जीवन का कुछ अनुभव पाकर 

घर घर देखा हमने जाकर 

रोशनी मिलती जिससे , वह दीपक 

पतंगे की फडफदाहत   पर तरस रहा है 


कितना सुन्दर,! आह ! उदार कितना

ह्रदय पतंगे का , मृदुल व्यवहार कितना 

रहा तड़पता मुझपर , नहीं मैं दिया 

हक़ इसका, जितना बनता नहं लिया 

इसने , हाल मेरा जस का तस रहा 


किया बखान पतंगे का सबनें , देखा नहीं 

वह प्यार हमने , रूप रंग पर मेरे वह 

मिटता रहा , हमने तो चाह रह दिखाना 

उसको रोशनी देकर , मारा वह  , उलटे

मिलता मुझको ही अपजस रहा  


आत्मा दुखी मन हंस रहा       

.मायावी सुर मायावती के

क्या पड़ी है हमें मुसीबतों से तुम्हारे 

हमारे लिए तो बहुत हैं हमारे 

नहीं मिला तुम्हें तो हर्ज क्या है आखिर 

हमें तो मिलेगा ही जो चाहते हैं हमारे  . 


लिखा भाग्य में है रहो लाइनों में 

बदलेगा, न सक , चेहरा बस आइनों में

हो साथी मुसीबत के सुख करोगे क्या आखिर

पाने  दो  उनको  जो  सगे  हैं  हमारे


ऐसा नहीं की दूर हम होंगे तुमसे 

रहेंगे वहीं न मिल पाओगे हमसे 

हैं  'जनप्रतिनिधि ' मगर ज्यादा चाहोगे क्या आखिर 

करने दो उनको जो चाहते हैं हमारे


यही क्या कम, पहुँच दर्शन दिए हम

तुम्हारे लिए आशा का दर्पण लिए हम 

हो मगन , देखो  चेहरा और जरूरत ही क्या आखिर
  
जरूरत हमारी ,'अनिल ' है पास आए हम तुम्हारे ..........

दोस्ती-प्यार

दोस्त 

दोस्ती को निभाने के लिए 

दे सकता है महज एक साथ

अपने पहेचन के लिए

प्यार

दुःख , गम, विपदा के साथ

पकडाता है हाथ सुख का

जीवन का सत्य बताने के लिए

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प्यार

शब्द एक 

लिए अर्थ अनेक

कोई सीना ताने चलता है

देते हैं कई मत्थे टेक

लखते रहते हैं अनेक

प्यार की उस ऊंचाई का अनुभव कर ............
 .