सोमवार, 4 फ़रवरी 2008

फिर क्यों रख रो रही वह अपनी पकी रोटी?

जल रही आग के आगे
तप रहे तावे पर , बैठी
रख रही वह पिसान कि तहें
धीरे धीरे नरम हांथों से
उलटती पलटती देखती
फिर चौपतती
फिर पहुँचाती सबके सामने
कच्ची है रोटी
काले धब्बे ज्यादा पड़ गए हैं
अभी और पकाना था
नहीं लगाई आंच
पक तो गयी , पर जल गयी
ज्यादा लगाई आंच
नहीं इसमें कोई स्वाद
हो गया सब बर्बाद
रख , पका दूसरी रोटी
देना उसे जो आये मेरे बाद
जली , भुनी , रोई
पस्ताती फिर ले आयी रोटी
वही धुवां वही आग
पर पसीना है नया
उलट पलट तरासती
फिर वही नयी रोटी
बन गयी रोटी एकदम नयी
पर फिर क्यों रख रो रही
वह अपनी पकाई रोटी ?.............

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