बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

दीप की बेबसी

आत्मा दुखी मन हंस रहा है 


जीवन का कुछ अनुभव पाकर 

घर घर देखा हमने जाकर 

रोशनी मिलती जिससे , वह दीपक 

पतंगे की फडफदाहत   पर तरस रहा है 


कितना सुन्दर,! आह ! उदार कितना

ह्रदय पतंगे का , मृदुल व्यवहार कितना 

रहा तड़पता मुझपर , नहीं मैं दिया 

हक़ इसका, जितना बनता नहं लिया 

इसने , हाल मेरा जस का तस रहा 


किया बखान पतंगे का सबनें , देखा नहीं 

वह प्यार हमने , रूप रंग पर मेरे वह 

मिटता रहा , हमने तो चाह रह दिखाना 

उसको रोशनी देकर , मारा वह  , उलटे

मिलता मुझको ही अपजस रहा  


आत्मा दुखी मन हंस रहा       

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