गुरुवार, 10 अप्रैल 2008

भाग्य का बिछौना

कहते थे लोग जिनको

खिलौना खिलौना

हाथों का खिलौना

आना जाना काम था जिनका

किसी के पास सिर्फ़ मनोरंजन के लिए

वह आज बन गयी है

सबके जीवन की लकीर

जो मलिका बन गयी है

सबकी जरूरत का

पर

अपनी जरूरत

सुख समृद्धि का फकीर

उसको नहीं था आता

कभी किसी के साथ

रोना धोना

जिसको पता होता था सिर्फ़

अपनें सुख पर गाना

लेकिन आज पड़ता है उसको

सबके सुख- दुःख-गम में

अपनें नयन-नीर बहाना

अब उसे नही कहता कोई

खिलौना खिलौना

सब दोहाई देते फिरते हैं अब

बिछौना बिछौना

भाग्य का बिछौना

सिर्फ़ बिछौना बिछौना

भाग्य का बिछौना ............ ।

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