गुरुवार, 10 अप्रैल 2008

चिंता

ऐ मेरी चिंता तूं कितनी भोली है रे! भोली है कितनी कि हर समय साथ रहा करती है । दुःख हो या विपदा, गम हो या निराशा, प्रतिदिन प्रतिक्षण यहाँ तक कि नीरवता में भी साथ दिया करती है तूं ! क्या मिलता है तुझको मेरे इस साथ में ? प्रसंसा के दो शब्द का भी तो हकदार नहीं तूं , तूं , जो करती है मजबूर सोंचनें के लिए , करती है उत्प्रेरित पानें के लिए , तूं बनाती है कमजोर बहानें के लिए आंसू किसी के मिलन या बिछुड़न पर । फ़िर भी इस हमारे सच्चे हृदय की न बन पाई वफादार है तूं । फ़िर तेरे इस भोलेपन का क्या वजूद? तुझे तो हो जाना चाहिए एकदम कठोर । पर फ़िर भी अभी तक तूं कितना भोली है रे ! ऐ मेरी चिंता तूं कितनी भोली है रे ........ ।

कोई टिप्पणी नहीं: