(हिंदी साहित्य सम्मलेन , प्रयाग , और हिंदी साहित्य अकादेमी दिल्ली के सयुंक्त प्रयास से बीते दिनों इलाहबाद में ''केदारनाथ अग्रवाल के जन्मशती वर्ष पर'' पर आयोजित दो दिवशीय सम्मलेन पर पठित कविता .)
ओ कवि
एक बार तुम फिर आओ
है रो रहा मानव जहां पर
है सो रहा मानव जहा पर
जो खो रहा विश्वाश अपना
उकेरकर संवेदनाये उनकी
विश्वाश नई तुम दे जाओ
एक बार तुम फिर आओ
है चमक धमक चारो दिशाए
है पस्त मनुष्य मदमस्त हवाए
है भ्रष्ट तंत्र सब भ्रष्ट सभाए
लख वेदना विपदा कृषक की
विचार प्रवाह के श्रेणियों में
इक मंच नई तुम फिर दे जाओ
एक बार तुम फिर आओ
सुबह वही है दोपहर वही
समय वही है पहर वही
यह देश वही है रूप वही
शाम वही है धुप वही
खींच गये जो चित्र देव तुम
असहाय वही है प्रारूप वही
पर व्यक्ति नहीं वह जो तुम थे
बस एक झलक उस भावभूमि पर
फिर से हमको तुम दे जाओ
बस एक बार
ओ कवि
एक बार तुम फिर आओ .
ओ कवि
एक बार तुम फिर आओ
है रो रहा मानव जहां पर
है सो रहा मानव जहा पर
जो खो रहा विश्वाश अपना
उकेरकर संवेदनाये उनकी
विश्वाश नई तुम दे जाओ
एक बार तुम फिर आओ
है चमक धमक चारो दिशाए
है पस्त मनुष्य मदमस्त हवाए
है भ्रष्ट तंत्र सब भ्रष्ट सभाए
लख वेदना विपदा कृषक की
विचार प्रवाह के श्रेणियों में
इक मंच नई तुम फिर दे जाओ
एक बार तुम फिर आओ
सुबह वही है दोपहर वही
समय वही है पहर वही
यह देश वही है रूप वही
शाम वही है धुप वही
खींच गये जो चित्र देव तुम
असहाय वही है प्रारूप वही
पर व्यक्ति नहीं वह जो तुम थे
बस एक झलक उस भावभूमि पर
फिर से हमको तुम दे जाओ
बस एक बार
ओ कवि
एक बार तुम फिर आओ .
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