सोमवार, 3 दिसंबर 2007

तारे-1

रे तारे !

रोज ही तूं भाग आता है

नहीं कहीं और जाता है

रात रात भर जग जग कर

देता रहेता है पहेरा

मौसम साफ हो चाहे छाया घना कोहरा

तुझे कौन सी दिक्कत

क्या आन पड़ी पारिवारिक संकट

शादी तो तेरी हुई नहीं

न ही दुश्मनी किसी से कोई कहीं

जरूर,तेरे पोषक ने तुझको दुत्कारा

फिर रहा तूं मारा मारा

चुक गयी न आज घर की रोटी

मिटटी का तेल खतम, बुझ गयी न ज्योति

काट रहा तूं प्रवास

नहीं तो होता घर का प्रकाश

चल छोड़ क्यों घबडाता है

बैठ सुना सब कुछ अब और कहाँ जाता है .......

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