
एक सुबह एक बालक आया
अपनी माँ के पास
ममता की छाया पाने को
जो था बहुत निराश
एक अनिंद्य आशा का
दीप जलाए हुए बोला वह,
ऐ माँ!
तू क्यों छुपाये है मुख
दे न वही सुख फिर
जो कुछ समय पहले दिया करती थी
काश! आज तूं जानती
मैं कितना हूँ विह्वल
कितना दुःख है
पीडा है
निराशा पन है
देखके तेरी ये बिखरी बिखरी सी सूरत
मुझे कुछ नहीं चाहिऐ इस झूठे समाज से
मैं भूखा हूँ-गम नहीं
प्यासा हूँ - गम नहीं
यदि मरता हूँ तब भी मेरी माँ
मुझे गम नहीं
न दे कोई मुझे एक रोटी
थोडी सी दाल
एक दाना चावल का
चर टुकडा जूठा अचार
पर तूं तो दे दे माँ एक बार
फिर वही प्यार
जो बचपन में दिया करती थी
कम से कम ख़ुशी तो रहेगी
मेरी आने वाली अगली सुबह
कुछ समय पहले जैसे थी .........
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