शनिवार, 11 अक्तूबर 2008

हम जूझ रहे हैं ...........


घूम रहे हैं आज हम


बेसुर, बेताल और बिना किसी कारण के


हम घूम रहे हैं


कहीं जनता की खीझ है


एक , एक दूसरे के ऊपर टूट रहा


पछाड़ने के चक्कर में ,


तेज रफ्तार से


गिरते लड़खड़ाते कूद रहा


तो कहीं गाड़ियों की कर्कश आवाज


यहीं कहीं


रिक्शेवान की चलती सांसे हैं


चपटे गाल और चिपके पेट


कई अनबूझ सवालों को बूझ रहे हैं


और हम जूझ रहे हैं


अपने ही मन की उदासी से


हैरत में है ये लोगो को देखकर


जनता की भेड़चाल पर


गाड़ियों की बड़ी बड़ी कतार पर


रिक्शे वाले के अनूठे व्यवहार पर


खुशी हैं वे अपनें अपनें आचार पर


फ़िर भी नाहक ही


अनेक तरीके जीनें के


आज हमको सूझ रहे हैं


लगातार उन तरीकों से


ऐसा लग रहा है


हम जूझ रहे हैं ....................... ।

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