गुरुवार, 12 नवंबर 2009

जब हिन्दी में सपथ लेने से अबू आजमी (सपा विधायक ) को भरी सदन में थप्पड़ मारा जा सकता है ....... तो हमारी क्या औकात?

क्या लिखूं क्या सोचू और विचारू क्या समझ में तो यही नहीं आता । कमजोरी योग्यता का नहीं है , भाव का नहीं है , विचार का नहीं है , है तो बस उस बात का की माध्यम तो हिन्दी ही है । वही हिन्दी जो कभी फारसी, उर्दू आदि से लड़ती हुई दिखाई दी । लुटी पिटी पर सम्हली किसी तरंह से । अंग्रेजी की रखैल बन गयी । सौतन का-सा सम्बन्ध रहा । यह (हिन्दी) पुरानी और वह (अंग्रेजी) नई फ़िर तो सम्मान नई को ही मिला । दे दिया गया एक कोना संविधान का । अदालती कार्यवाही का । यह ना सोचे लोग की निकल दिया है भारत ने इसे (हिन्दी को)अपने घर से ,राष्ट्रभाषा का कुनबा भी पहना दिया गया । पर हाय रे किस्मत! अनाथ तो अनाथ ही होता है । नीच कुत्सित, बेहया भी समझा जाता है। भले ही कितनों शालीन क्यों ना हो । भले ही कितनों सभ्य क्यों न हो । दरिद्र और निघर्घट ही कहा जाता है । दुरदुराया जाता है । फटकारा जाता है । भगाया और दुत्कारा जाता है क्योंकि जो सौंदर्य , जो रस , जो श्रृंगार नये में झलकता है पुराने में वह होता ही कहाँ है । भले ही उसका आधार पुराना ही हो जीवन पुराना ही हो , उसके बिना ना तो उसका स्थायित्व है और ना ही तो उसका स्तित्व । पर द्वार की शोभा, सेज की शोभा, हृदय और अंतरात्मा की शोभा बढाती तो नई ही है ,पुतानी तो नाली की गली की , मैल और गन्दगी की संवाहिका होती है , संरक्षिका होती है ।

फ़िर मैं कैसे लिखूं इस हिन्दी में अपने विचार को ? क्या वजूद है हमारा , हैशियत क्या है ? जब हिन्दी में शपथ लेने से अबू आजमी (सपा -विधायक)को भरी सदन में थप्पड़ मारा जा सकता है एक महिला विधायक के साथ दुराचार किया जा सकता है , जबकि वहां कानून है ,सुरक्षा है , स्थिति है किसी भी परिस्थिति से निपटने की फ़िर भी उनको मारा गया तो हम आम आदमीं की क्या औकात ? जबकि वो "गोधन, गजधन बाजधन और रतन धन खान " से परिपूर्ण हैं फ़िर भी पिटे हिन्दी बोलने मात्र से , तो क्या हम बचे रह सकते हैं ? हम तो उड़ाए जा सकते है दिन दहाड़े , भरी सभा में , अकारण ही बिना किसी कारण के , बिना किसी प्रयोजन के । कहीं भी किसी भी स्थिति में । हमें न तो इस देश का कानून तंत्र ही बचा सकता है और ना ही तो सुरक्षा तंत्र । फ़िर उस कानून से उस सुरक्षा तंत्र से आशा ही क्या किया जाय जिसकी भरी संसद में धज्जियाँ आए दिन उडाई जाती रही हैं । आतंकवादियों द्वारा अतिक्रमण दिन-प्रतिदिन ही किया जाता रहा है । यहाँ तक की धमकाया जाता रहा है जो किसी पड़ोसी देश के द्वारा प्रतिपल प्रतिक्षण , और यह कायरों की भांति , कोढियों की भांति , नापुन्षकों की भांति सुनता रहा है । न तो लज्जा आती है और ना ही तो शर्म । चारो तरफ़ से फटकार खाने के बाद डांट खाने के बाद जगा भी , उठा भी तो हिला दिया अपनी दुम कुत्तों की तरंह । साफ हो गयी आरी बगल की जगंह सिर्फ़ उसके बैठने भर की । आशाएं ही क्या रखे ऐसे अपंग , लाचार कानून और शाशन प्रणाली से ?

1 टिप्पणी:

अर्कजेश ने कहा…

बात सही फिर भी समस्‍या तो वही है