गुरुवार, 29 सितंबर 2011

विद्रोही तारा हूँ मैं

जिंदगी के उहापोह में 
सुख के चाहत और 
दुःख के टोह में
निकला हुआ घर से 
रजिस्टर्ड आवारा हूँ मैं 

घूमा करता हूँ दिन भर 
टहला करता हूँ 
समझे न कोई फ़ालतू मुझे 
किसी गली में सम्हलकर
प्रायः निकला करता हूँ मैं 

कोई समझे न समझे 
यहाँ सबका प्यारा हूँ मैं 

चमकते सितारों का साथी रहा मैं भी कभी 
आज उनके गोल से निकला 
बिछुड़ा हुआ उनसे 
विद्रोही तारा हूँ मैं 
खो चूका हूँ तेज अपना 
वह सुख पुराना ,आज  सपना 
कह नहीं सकता कौन साथ है 
पहुंचाएगा गंतव्य स्थल तक 
निहायत ही दीन हीन 
किस्मत का मारा हूँ मैं ..... 

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