शुक्रवार, 2 मार्च 2012

किस्मत ही भारी है

कोई चले मोटर पर 

कार , ऑटो, स्कूटर
 
किसी को प्यारी है 

कोई ढोता रिक्शे पर 

दिन भर सवारी है

बैठ शाम घर कोई कहता 

युग की मंहगाई ने हमको मारी है 

कोई बैठ फूटपाथ पर रोता 

दुनिया में एक 

बुरी किस्मत हमारी है 

प्रबुद्ध जन नारे देता 

मिट गयी असमानता 

अब,समानता की बरी है 

स्तब्ध है आमजन 

असमानता बदस्तूर जारी  है

सच है इस दुनिया में 

कोई कम सुखी ,

न अधिक कोई दुखारी है 

उम्र और योग्यता पर 

किस्मत ही भारी है 

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