हम सा भला न कोय है , ना हममे कोई दोष .
लक्ष्य एक हिंदी समृद्धि , सबतों बढ संतोष ..
यह बसत सब ह्रदय में सब इसमे ही समाय
सुगम मृदुल शुभ सरिस यह , सद्रिस न दूजा भाय ..
जन-मन-हृदय जे बसतु , जानत यहू संसार
सकल समृद्धि सुवासिनी , हिंदी अभिव्यक्ति सार ..
देखहु जगत में देखि के , भाषा कै व्यवहार
नही हिंदी सम पावगे , श्रद्धा अपरम्पार
मोल न जेकर जगत में , जे न कहूं पे विकाय .
मात्रि -भूमि-भाषा अनिल , दूजा न हिंदी सिवाय ..
विश्व प्रेम , समता विपुल , सिखवत साहित्य सेतु .
महादेवी , प्रसाद , पन्त , निराला भारतेंदु ..
जन-मन होता धन्य है , बहता सुखद समीर .
श्रोत अनिल है वह विस्तृत , तुलसी, सूर, कबीर।।
आश्रय पावत , भ्रमित युगल , जानहु ''प्रेम क पीर'' .
घन आनंद बन बरसत हैं , बन दिनकर गंभीर ..
जितना कहहु वह थोर है , हिंदी का संसार
आरत- भारत हरत है , हिंद प्रेम का द्वार .
लक्ष्य एक हिंदी समृद्धि , सबतों बढ संतोष ..
यह बसत सब ह्रदय में सब इसमे ही समाय
सुगम मृदुल शुभ सरिस यह , सद्रिस न दूजा भाय ..
जन-मन-हृदय जे बसतु , जानत यहू संसार
सकल समृद्धि सुवासिनी , हिंदी अभिव्यक्ति सार ..
देखहु जगत में देखि के , भाषा कै व्यवहार
नही हिंदी सम पावगे , श्रद्धा अपरम्पार
मोल न जेकर जगत में , जे न कहूं पे विकाय .
मात्रि -भूमि-भाषा अनिल , दूजा न हिंदी सिवाय ..
विश्व प्रेम , समता विपुल , सिखवत साहित्य सेतु .
महादेवी , प्रसाद , पन्त , निराला भारतेंदु ..
जन-मन होता धन्य है , बहता सुखद समीर .
श्रोत अनिल है वह विस्तृत , तुलसी, सूर, कबीर।।
आश्रय पावत , भ्रमित युगल , जानहु ''प्रेम क पीर'' .
घन आनंद बन बरसत हैं , बन दिनकर गंभीर ..
जितना कहहु वह थोर है , हिंदी का संसार
आरत- भारत हरत है , हिंद प्रेम का द्वार .
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