बुधवार, 12 सितंबर 2012

हिंद- दिवस के रूप में

हम सा भला न कोय है , ना हममे कोई दोष  .
लक्ष्य एक हिंदी समृद्धि , सबतों बढ संतोष ..

यह बसत सब ह्रदय में  सब इसमे ही समाय
सुगम मृदुल शुभ सरिस यह , सद्रिस न दूजा भाय ..

जन-मन-हृदय जे बसतु , जानत यहू संसार
सकल समृद्धि सुवासिनी , हिंदी अभिव्यक्ति सार ..

देखहु जगत में देखि के , भाषा कै  व्यवहार
नही हिंदी सम पावगे ,  श्रद्धा अपरम्पार

मोल न जेकर जगत में , जे न कहूं पे विकाय .
मात्रि -भूमि-भाषा  अनिल , दूजा न हिंदी सिवाय ..

विश्व प्रेम , समता विपुल , सिखवत साहित्य सेतु .
महादेवी , प्रसाद , पन्त ,  निराला भारतेंदु ..

जन-मन होता धन्य है , बहता सुखद समीर .
श्रोत अनिल है वह विस्तृत , तुलसी, सूर, कबीर।।

आश्रय पावत , भ्रमित युगल , जानहु ''प्रेम क पीर'' .
घन आनंद बन बरसत  हैं , बन दिनकर गंभीर ..

जितना कहहु वह थोर है , हिंदी का संसार
आरत- भारत हरत है , हिंद प्रेम का द्वार .

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