बुधवार, 12 सितंबर 2012

जो सुझाए मार्ग- पुण्य स्वागत बारम्बार है

आता नही समझ करें क्या  हिंदी दिवस आज है
हैं पूर्ण ना स्वतंत्र हम  न पूर्णतः स्वराज है
अँधेरे में ही बीता कल  अँधेरे में ही आज हैं
कल का कुछ पता नहीं शंकाओं का सरताज है

भाषा वहीं समृद्धि है   जनता जहां प्रबुद्ध है
है नवीनता वहीं जहां  पुरातनता विशुद्ध है
अवरुद्ध है हर मार्ग नीति कोई नहीं शुद्ध है
देखो जहां वहां वही  एक दूसरे पे क्रुद्ध है

सभी जगह रात्रि है , कही न दीखता भोर है
जहां कही रहो वही  पहले से बैठा चोर है
शोर है उठता गजब  परसान लोग-बाद है
है मौन साधुवाद और  शैतान सब आजाद है

ठीक है जो जहां  जैसे भी कर ले कुछ यहाँ
है उन्नति का दौड़  कौन लेता है सुध कहाँ
अवनति की बड़ी चीज ये पता न किसी को कहीं
दरिद्रता के  लोक  में  दम  तोड़ समृद्धता रही

आओ विचारे हम सभी व्यथाओं का अम्बार है
हार में  है  जीत ,  जीत  में  ही  छुपाहै  
जो सुझाए मार्ग- पुण्य  स्वागत बारम्बार  है
 अन्यथा हिंदी दिवस पर   उसका तिरस्कार   हार  है 
करते हम पुकार आज  हिंद द्वार पर खड़े
बिगड़ी  दशा जो  देश की  युवा सुधार पर अड़े
कर एक बार देख प्रण   मौका मिला आज है
दूर नहीं सत्य 'अनिल ' बैठा राम राज है 

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