बुधवार, 12 सितंबर 2012

न समय और बर्बाद करो 2

उठो, बढ़ो , ऐ युवा साथियों
न  समय और बर्बाद करो
घिरे हुए किस विचार-कुञ्ज में
जन जीवन हित कुछ काज करो

है जरूरी आज उठ
समय को पहचानकर
दे बदल समाज तुम
स्वयं को कुछ मानकर

सोते रहे , गर जागे नहीं
पीछे बहुत रह जाओगे
बढ़ जाएगा दुनिया जहां
मुंह की वहां तुम खाओगे

सोच लो फिर क्या मिलेगा
वह स्वप्न की दुनिया निराली
हर रंग के व्यंजन दिखेंगे
जागने के बाद खाली

है सुहाना जानते हो
कल्पना का लोक भी
सुख भी वहां है मानते हो
दुःख भी वहां है शोक भी

स्वतंत्र हो कर लो यहाँ कुछ
चाहते हो जो अभी
निजता वहां उस लोक में है
परतंत्रता भी रोक भी

है वही इस्थिति यहाँ की
जी रहे जिस रूप में
दुःख वही वेदना मिलेगी
रंक में की भूप में

फिर भी उठो तुम दृढ बनो
सिंह सा दहाड़ कर
है मार्ग जो अवरुद्ध, खोलो
नरसिंह सा चिग्घाड़ कर  

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