सोमवार, 17 मार्च 2008

अगर कहीं कुछ हो जाता है

अगर कहीं कुछ हो जाता है

गजब की चिंता होती है मन में
हलचल सी उठ पड़ती है

एक मार्ग से हटते हटते

आँखें भी रो पड़ती हैं

पर धैर्य खो देता है तन

मन शांत नहीं रह पता है

अगर कहीं कुछ हो जाता है

लाखों करोरों भावनाएं

लेकर आसमा में चक्कर लगाते हैं

एक बार अंतरिक्ष पहुंचकर

धरती वापस आते हैं

मुख्य बिन्दु पर चलते चलते

बुद्धि ही खो जाता है

अगर कहीं कुछ हो जाता है


रहता एक कहीं अगर तो

चार उसे मैं बनता हूँ

अपनी झूठी खबरें देकर

सबको खुश कर जाता हूँ

पर मजबूरी हो चली यहाँ पर

असत नहीं छिप पता है

अगर कहीं कुछ हो जाता है


किसी हादसे में कहीं से

आलसी अगर आ जाता है

ch च करते करते वहाँ

ख़ुद घायल हो जाता है

अन्ताहल में आकर सबको उस पर रोना पड़ता है

अगर कहीं कुछ हो जाता है

कुछ अच्छे कुछ बुरे जुटते

रहते उस शोकापन में अपनी बीती बातों को
कह जाते एक घतानापन में
वो विचरते देते सुख हम पर

दुःख ही उनको मिलता है

अगर कहीं कुछ हो जाता है

कुछ सहकारी कुछ ग्रामीनी

आ जाते दो जन के गम में

कुछ घूसखोरी कुछ खिश्निपोरी

कर जाते उनके अंधेपन में

चिंता मुझको इस पर होता है

जल्द मानव घबडाटा है

अगर कहीं कुछ हो जाता है

अपनें विगत गत जीवन को वो

खुश्खोरों को बताते हैं

स्थ घूसखोरी के कारन

एक को चार बनाते हैं

सब बातों को छोड़ जवान दिल

इनकी बातों में उलझता है

अगर कहीं कुछ हो जाता है ................ ।




कोई टिप्पणी नहीं: