मंगलवार, 18 मार्च 2008

ऐसी आए मेरी रानी

हे इश्वर भगवन प्रभु

हे मावा महरानी

करो ऐसा जुवाड

जेसे आवे हमारो रानी

गोरी हो या वो काली

पर लगे सदा भौकाली

लहंगा पहने गोरखपुरिया

नथुनी राजस्थानी

पैर जुडा हो दोनों तन से

एक हो छोटा एक बड़ा

निकुरा हथिनी सूंड के जैसी

हो एक आँख की कानी

नाक निकुरे से छूती रहे

घूमें जूठ लगाए मुख में

चले जिधर भी करें घृणा सब

पर समझे वो ख़ुद को रानी

जब भी निकले घर से वो

कीचड तन में लगा रखे

तन भी फूली हो मुर्रा भैंसों सी

बैठत होवे परसानी

गर ऐसा प्रभु हो गया तो

होगी सटी सावित्री ही वो

बची रहेगी बुरी नजरों से सबके

मैं बना रखूंगा उसे अपनें महलों की रानीं

हे इश्वर भगवन प्रभु ..................... ।

4 टिप्‍पणियां:

Abhishek Ojha ने कहा…

सती सावित्री चाहिए या सटी सावित्री? :-)

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

आपने कविता के जरिए जो माँगा है....परमात्मा आप की इच्छा पूरी करें ...शुभ आषीश!!:)

राज भाटिय़ा ने कहा…

भाई बहुत चलाक हॊ,उपर घरवाली माग रहे थे, ओर जहा भि रानी माग रहे हो, जलदी ही भगवान दोनो दे तुमहे.

The Campus News ने कहा…

itene utawale mat ho yeh ichachha bhee jaldee hee puri ho jayegi. baad men fir rooge ki

jab se hue hai shadee,
anshu baha raha hun,
mushibat gale padi hai
usako nibha raha hoon.

Thanking for .
&
bhagavan aap ki jodee ko salamat rakhen.