गुरुवार, 15 मई 2008

काश ! मेरी भी एक प्रेमिका होती

काश मेरी भी एक प्रेमिका होती
जीवन सुख निधि की कोशिका होती
भागीदारी हर क्षेत्र में करता
गर मुस्कान में उसकी भूमिका होती

वो पल सुखमय कितना होता
जब यादें उसकी आती
मेरी रूखी चुपडी स्मृति में
आहें देते बलखाती

नवयौवना की एक मीठी स्पर्श
तीखी स्वाद जवानी की
निर्मम सिसकी बाँहों के उसकी
करती हरण मेरे नादानी की

पास आकर दिखती कहती
छुओ मुझे कुछ सहेलाकरके
मेरे गुलाबी होठों को सदमें से
चुमों चाटो कुछ बहलाकरके

होगी तुम्हें रसानुभूति इससे
पकडो बाँहों को दे झकझोर
जितना हो सके लूटो इसको
बुझाओ प्यास, मेरी ,अपनी
उथल पुथल तोर मरोर

मैं भी प्यासा वो भी प्यासी
पर दोनों की एक उदासी
जब पकड़ता बाँहों में उसको
हकीकती दुनिया होती गुस्सा सी

ये सपने सच होते शायद
जब वो जीवन साधन की
एक जीविका होती
काश मेरी भी एक प्रेमिका होती

और वो वादा करती कुछ ऐसी
दर्शाती प्यार मीन- जल जैसी
श्वाती नक्षत्र की बूंदे बनकरके
अंतरात्मा की क्षुधा बुझाती

आती मटकी मार इठलाती
काले गलों को बालों पर सहलाती
होठों पर मदन की आहें चिक्कारती
बिस्तर पर पड़ते ही जब वो मदमाती

उसकी ऐसी क्रियाकलापों का
करता वर्णन मैं सुन्दरतम लेखो में
देश जहाँ में छाप होती अलग जब
अमित अनुराग मेरा भी होता आलेखों में

सब कोई पढ़ते आँखें दबाकर
अपनी उत्तेजना को स्वयं में सम्हाले
बच्चा , नवयौवना या वोल्ड बुढापा
छाती से लगाते कुछ शर्माकर

भाता मैं नवहीर से सबों को
जब वास्तव में वो
मेरी कविता की नायिका होती
काश मेरी भी एक प्रेमिका होती ............. ।

कोई टिप्पणी नहीं: