शुक्रवार, 16 मई 2008

शरीर है अनेंकों पर आत्मा एक ही मिलेगा

कहीं भी किसी दिन मिलो तुम किसी से

हर एक दिन नया गम खिलता मिलेगा

दिखेगा तुम्हें वो तुम्हारा हितैसी

तुम्हीं से तुमपे वो हंसता मिलेगा

दिखेगा नया तेज व्यक्तित्व पर उसके

सुंदर बदन , मुख , चेहरा लगेगा

चाहोगे तो जानना हकीकत भी उसकी

मगर जब सुनोगे रूप तेरा ही मिलेगा

कहेगा मुसाफिर यहीं का हूँ एक मैं

नहीं घर चावल आज , आटा खतम है

झगडी है मम्मी , पापा गुस्से हैं ऊपर

पत्नी को छाया मेरी प्रेमिका का बहम है

था फ़ोन लड़के का , फीस देना है उसको

डबल कट लाइट का फक्ट्री भी है बंद

किया मिस्ड चाची नें है काल मुझको

न पैसा मोबाइल में , उधर प.सी.ओ भी है बंद

छोटी है लड़की बिस्कुट जरूरी उसे भी

बीड़ी , तम्बाकू के यहाँ लाले पड़े हैं

साबुन खतम , ना नहाया , कपडे भी है गंदे

दिए थे उधार जो , वे भी मूंछ ताने खड़े थे

भइया ! अगर कुछ हो देना मुझे आज

अभी तो कारखानें में मेरे पैसे पड़े हैं

मगर क्या पता उस विचारे को था कि

भइया भी उसी लिए पास उसके खड़े हैं

सोंचोगे प्यारे , सही कहती है ये दुनिया

शरीर है अनेकों पर आत्मा एक ही मिलेगा

अगर दुखी किसी का तन कहीं भी दिखा तो

समझो वही दुःख कल तुमको भी मिलेगा ............. ।

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