गुरुवार, 15 मई 2008

राष्ट्रपति कलाम का सुझाव - दो दलीय व्यवस्था

राष्ट्रपति कलाम , द्वारा दर्शाई गयी नयी राजनीतिक प्रणाली , जिसके अंतर्गत दो दलीय राजनीतिक प्रणाली को अपनाए जानें की नसीहत दी गयी है । सिद्धांतों में इस पर यदि ठीक प्रकार से विचार किया जाय तो देश के लिए हितकर हो सकता है । इस प्रणाली के अपनाए जाने से न सिर्फ़ सत्ता को स्थिरता मिलेगी अपितु एक तो बरसाती मेढक की तरंह दिन प्रतिदिन बढ़ रहे राजनीतिक दलों की संख्या पर विराम लग जायेगा और दूसरे , एक स्वच्छ राजनीतिक वातावरण का निर्माण किया जा सकेगा । जिससे न तो संसद की कार्यवाहियों पर कोई अवरुद्ध उत्पन्न होगा और न ही तो सरकार की नीतियों को लागू करनें में बेवजह और किसी प्रकार की देरी । जबकि वर्तमान भारतीय राजनीतिक प्रणाली में यह गुन विद्यमान नहीं है । बहुदलीय और खासकर गठबंधन प्रणाली होनें से एक तो साधारण से साधारण नीतियों को भी लागू करनें में व्यापक समय लग जाता है और दूसरे कुछ अच्छे कार्य भी समर्थक दलों की नाराजगी के चलते नहीं हो पाते इससे देश को व्यापक हानियों का सामना करना पड़ता है ।

पर यदि व्यवहार में देखा जाए तो इस प्रकार की व्यवस्था भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए किसी भी प्रकार से फायदेमंद नहीं है । ऐसा होनें से एक तरफ़ तो जहाँ लोकतंत्र को आघात पहुंचेगा वहीं दूसरी तरफ़ राज्य की स्वायत्तता पर भी विराम लग सकता है । इसमें कोई संदेह नहीं है की आज भारत जिस तरंह से विकास की नयी ऊंचाइयों को छू रहा है , वह बहुदलीय प्रणाली का ही श्रम है । स्वतंत्रता प्ताप्ती से लेकर १९६७ तक और १९८९ से १९८० तक भारत में एक ही दल की प्रधानता रही क्योंकि लोगों को राजनीतिक घटनाओं और मतदान व्यवहार का ठीक प्रकार से ज्ञान नहीं था । जबकि आज राजनीतिक जाग्रति जनता में स्पष्ट रूप से दिखायी दे रही है । जिसका परिणाम एक ही दल के युग की समाप्ति के रूप में हमारे सामनें आया । पर इसका श्रेय हम बहुदलीय प्रणाली को ही दे सकते हैं ।

आज देश में सत्ता की राजनीती न होकर विकास की राजनीती है और जिस तरंह से राज्य सरकारों नें अपनें अपनें राज्यों को विकास की ऊंचाइयों तक पहुँचाया है या पहुंचानें की कोशिश कर रहे हैं उसमें भी बह्युदालीय प्रणाली की भूमिका को नाकारा नहीं जा सकता ।

मिली- जुली सरकारों का स्तित्व में आना भविष्य के लिए तो हानिकारक माना जा सकता है पर इसको अंत करनें के और भी तरीके हो सकते है सिवाय दो दलीय व्यवस्था के अपनाए जानें के । हाँ यदि भारतीय इतिहाश को पुनः उसी आइनें के आवरण में देखना हो तो यह व्यवस्था उपयुक्त मानीं जा सकती है .......... ।

1 टिप्पणी:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

दो दलीय प्रणाली सिक्के के दो पहलुओं की तरह होती है जिस में सिक्के के पहलू बदलते रहते हैं। सिक्का वही रहता है। इस का अर्थ होगा यथास्थितिवाद।