शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

पर क्या कभी उस माँ के भी व्यक्तिगत दर्द को समझने की कोशिश हमारा यह समाज और हमारी यह मीडिया करती है ......?

अभी चलेगा । और चलेगा यह तांडव । तब तक जब तक कि इस समाज का शिक्षित और धनिक वर्ग लोभ लिप्सा को चरम गति तक ना पहुँचा देंगे । तब तक कन्या भ्रूण हत्या होता रहेगा । आज पंजाब में , दिल्ली में, हरियाणा में तो कल दूसरे अन्य राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश ,बिहार, उडीषा और महाराष्ट्र में । दरअसल यह जहाँ अभी तक सिर्फ़ अपराध के रूप में समझा जाता रहा है वहां इसके लिए कानून बनाये जाते रहे हैं । और समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग , चाहे कानून के दंड व्यवस्था के डर से या फिर आबकारी अफसरों की सक्रियता की वजह से , इस अपराध से किनारा कर लिया अथवा व्यक्तिगत लिप्तता को कम कर लिया । पर ज्ञातव्य है कि अभी तक ऐसा कुछ कुछेक जगहों पर हुआ है जबकि अन्य जगह ऐसे अपराध को ना सिर्फ़ मान्यता दी जा रही है अपितु स्वेक्षा से निरापराध अपनाया जा रहा है। क्योंकि शायद यह उनके लिए अपराध नहीं प्रत्युत उनकी अपनी मजबूरी है ।
कन्या भ्रूण हत्या में लिप्त एक डाक्टर दिल्ली ,जो कि भारत की राजधानी है , में रेंज हाथों पकड़ा गया, ऐसा दैनिक समाचार में पढनें को मिला ,मनाता हूँ मैं कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था । वह शिक्षित था । वह धनाढ्य था । वह सबसे पहले सामजिक व्यक्ति था । धनालोभ में इस तरह मानवीयता की न्रिसंस हत्या नहीं करनी थी उसे । जब वह ही ऐसा करता है तो अशिक्षित और अनपढ़ लोग कैसा व्यवहार करेंगे ? पर क्या कभी उस मान के भी व्यक्तिगत दर्द को समझने की कोशिश हमारा यह समाज और हमारी यह मीडिया करती है ? क्या कभी ये पूछने की चेष्टा किसी ने की कि वह सिर्फ़ पुत्री को ही क्यों मरना चाहती है ? क्यों अपने भ्रूण में पल रहे उस भ्रूण को इसलिए गिरवा रही है कि वह लड़का नहीं लड़की है ? शायद नहीं ? क्योंकि ऐसा पूछने में बहुत गहरे में जिस जवाब की आशा उस माँ को होगी वैसा ना तो हमारे समाज के पास है और ना ही तो इन मीडिया वालों के पास अथवा विधि निर्माताओं के पास ।
जबकि जमीनी हकीकत यह है कि जो शिक्षित है, जो धनवान है वह प्रायः ऐसा अपराध नहीं करता क्योंकि चाहे वह लड़का हो या लड़की हो उसके लिए दोनों ही बराबर होते हैं । कमाता लड़का भी है लड़की भी है । जीवन उसका भी है , उसकी भी है । यह बात धनाढ्य और शिक्षित माता - पिता को अच्छी तरह मालुम होती है । क्योंकि उनके पास होता ही इतना सब कुछ है कि वह उनकी परिवरिश , शादी-व्याह आदि बड़े मजे से कर सकते हैं । पर क्या ऐसा उसको भी नसीब है जिनके पास ना तो खाने को रोटी है और ना ही तो तन ढकने का कपड़ा । और ऐसी स्थिति में यदि वो उस बेटी को जन्म भी देती है तो किस आधार पर पलेगी ? चलो किसी तरंह पाल भी लिया । नौकरी किया । बर्तन माजा । बेगारी की । पर जब १६-२० साल की वह पुत्री हो जाए तब ...... कहाँ से लाये वह इस महगाई में एक लाख रुपये दहेज़ देने के लिए और शादी करने के लिए ? फ़िर , फ़िर क्या यहीं से सुरु होती है भ्रूण हत्या की कहानी । जैसा कि प्रेम रोग , ऋषि कपूर द्वारा अभिनीत फ़िल्म में राधा की सहेली और उसकी बहन का व्याह एक बुजुर्ग और गंजे के साथ कर दिया जाता है कि वह गरीब घर की लड़की थी और उसे अधिकार नहीं है अधिकार है भी तो क्षमता नहीं है अपने मनपसंद के वर को चुनने के लिए ।
रही बात सरकारी महकमे की तो मुलायम सिंह , पूर्व मुख्या मंत्री, उ प्र, का +२ पास लड़कियों के लिए २०००० का पैकेज किसी से छुपा नहीं है , जिसको पानें के लिए कितने अविभावक बैंकों के चक्कर काटते रहे और कितने स्कूलों में सलामी देते रहे । रही बात कुमारी मायावती , मुख्या मंत्री , उ प्र , के "महामाया बालिका आशीर्वाद " योजना तो उसकी परिणत भी संतोष जनक स्थिति में होगी कहा नहीं जा सकता ।

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