शनिवार, 25 सितंबर 2010

अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनिओन के प्रांगन से

लाल लाल लाल धरा का लाल आ गया है
प्रगति का उन्नति का नव  भूचाल आ गया है
सुधरों   ऐ पूजीपतियों  सम्हालो  स्वयं को
न  समझो  ये भ्रष्टाचार का   कोई दलाल आ गया है
और ना ही तो कूराकर्कत   का कोई  जंजाल  आ गया है
निचोड़कर खाए  हो  जिसके चामों  को  अभी  तक
भूख  से  चरमराता  वही  कंकाल  आ  गया  है
समझो तुम्हारे ऐय्यासी  पर  मंडराता  तुम्हारा काल आ गया है
क्योंकि प्रगति का उन्नति   का  नव  भूचाल  आ  गया है ....... .
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चल  रहा  था  बेचैन  हवा  इस  कदर
बह  रहा  था कहीं  मै इधर  कुछ  उधर
उठा  एक  झोंका  कि  बस  सबर  खा गये
थोड़ी  देर के  लिए  ही सही , कहीं गुजर पा गये
बंद हुआ  जब  चलना  हवा, तो  सोंचा ,हम कहाँ आ गये
और  पहुंचा  जब  यहाँ  तो  लगा घर  आ  गये
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कितने लोग हमारे  लिए  इतने  आत्मीय  होते हैं
बड़े होकर भी ,  हम  उनके  लिए  छोटे  हैं
पता नहीं  वे   हमको  याद  करते  हैं कि  नहीं
हम  तो  उनके  ख्यालों में  अब  भी  रो  लेते हैं ................ .

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