शनिवार, 25 सितंबर 2010

कुछ दोहे

याद   न  कर  मन  और  अब  ,  याद  रहे  ना  कोय
जे  मन  उलझा  याद  में  ,  याद  गये  ना  कोय ....

आंसू  पानी  एक  सम  ,  एक  प्राण  दो  रूप
एक  रहे  जीवन  सरल  ,  एक  रहे  नर -  रूप  ......

मन  क्यों  मन  से  दूर  है ,  मनन  का  है  फेर 
मन  मांगे  मन  ना  मिलै , मन  का   है  अंधेर .. ..

ध्यान  रहा  निज  रूप  का ,  मन  का  सुनी  गुहार
रूप  घटा  यौवन  ज़रा  , फीका  मन  का  द्वार  .....

हार  न  माँ  बढ़त  चल ,  सब  जग  निज  घर  द्वार
सब  संग  प्रेम  बढाय के , हो  जा  गले  का  हार .....

गिरत  बूँद  मन  होत खुश  ,  बूँद  गिरे  दुख  धोय
बूंदन  की  महिमा  बहुत  ,  सागर  पूरित  होय  ......

प्यासी  धरती  धधक  कर  ,  नभ  से  मांगी  तोय
जे  नभ  बरसा  गरजकर ,  होत  ख़ुशी  सब  कोय .....

1 टिप्पणी:

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत ही अच्छे सारगर्भित दोहै हैं

गिरत बूँद मन होत खुश,बूँद गिरे दुख धोय
बूंदन की महिमा बहुत, सागर पूरित होय ......
बहुत अच्छा लगा...
http://veenakesur.blogspot.com/
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