गुरुवार, 30 सितंबर 2010

अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस और राष्ट्रीय शिक्षक दिवस पर

आज मैं कुछ सोच रहा हूँ . समझ रहा हूँ. विचार कर रहा हूँ .  यह जानते हुए भी कि इसका कोई प्रतिफल मुझे प्राप्त होने वाला नही है , पर क्योंकि एक नागरिक हूँ देश का , सदस्य हूँ समाज का , अंश हूँ समुदाय का , प्रतिभागी हूँ भविष्य में बन्ने वाले किसी संगठन विशेष का इसलिए उस मंच पर जहां बहुत सी मूर्तियाँ दिखती हैं अपनी अपनी भूमिका में , कोई किसी रूप में तो किसी रूप में . अवसर सभी को मिलता है , परिस्थितियाँ सभी को मिलती हैं पर समयाभाव के कारन स्थितियां परिवर्तित कर दी जाती है .
unhin स्थितियों पर कर रहा विचार पूर्ण व्यवहार हूँ .
                  
                          दो महत्वपूर्ण दिवस 'राष्ट्रीय शिक्षक दिवस '' और ''अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस '' हमारे सामने से जा रहे हैं हर साल की तरह इस साल भी . एक की गूँज पूरे हिन्दुस्तान में है तो दूसरा सम्पूर्ण विश्व में गुंजायमान हो रहा है . दोनों का ही उद्देश्य मानव को मानवीयता प्रदान करना है . आंकड़े दोनों पर बैठे जा रहे हैं . ग्राफ दोनों का ऊंचा है लोगों को दिखाए जा रहे है . बताये जा रहे हैं न्यूज पेपरों और टीवी चनलो पर कि इस वर्ष अगले वर्ष की अपेक्षा इतने लोगो को साक्षर बनाया . इतने बेरोजगार अध्यापकों को अध्यापकी दी गयी और वरिष्ठ अध्यापकों को सम्मानित किया गया . मतलब सरकारी आंकड़े feelgood के आवरण में चमचमा रहे हैं जबकि वास्तविक स्थितिया यथार्थता के धरातल पर दम तोड़ रही हैं . सिसक रही हैं .
                    
                                           बात अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस की 

                  निरक्षर कौन था ? कौन है ? कौन साक्षर हुआ ? क्या इसका जवाब लिखित रूप में  किसी सरकारी महकमें में पाया जा सकता है .? जो निरक्षर हैं , स्कूल नही पहुच पा रहे हैं  , स्कूल का द्वार उन्हें दिखाया गया तो कैसे ? उन अनपढ़ , अशिक्षित , और नासमझ अविभावकों को साक्षरता के विषय में समुझाया गया तो कैसे ? क्या यह बताया जा सकता है ? ''सर्वशिक्षा अभियान '' '' सभी पढो , आगे बढ़ो '' का जो नारा सभ्य समाज द्वारा दिया गया है उसका कितना असर अनपढ़ और गंवारों पर पड़ा क्या कहीं दर्शाया जा सकता है ? जो पढ़े लिखे है , जो स्कूल जा रहे हैं , जिनके अविभावक समझदार हैं उन्हीं की एक लम्बी चौड़ी फ़ौज इकठ्ठा करके किसी जुलुस में दिखा देना क्या यही सर्वा शिक्षा अभियान है ?


                    सर्वशिक्षा अभियान'' के तहत '' मिड-डे-मिल ''योजना को आकर्षण का केंद्र बताया जा सकता है . बच्चे दिन प्रतिदिन के खानें के लालच में पढ़ने आयेंगे . गरीब अविभावको को सुविधा होगी , वे बच्चों को पढ़ने भेजेंगे . पर जरा बताइए कितने अध्यापको की तैनाती है ऐसे विद्यालयों में ? भोजन जो दिए जाते हैं , क्या यह सत्य नहीं है है कि उसमें कीड़े मकोड़े स्वतंत्र रूप से विचरण कर रहे होते हैं . फिर जो माता-पिता दिन - रात मजदूरी करके दो वक्त की रोटी का जुवाड करते हैं क्या वे अपने बच्चों को नहीं खिला सकेंगे ? इस जगंह मिड- डे - मिल की क्या जरूरत थी ? क्या इसके बजे कोई दूसरी योजना नहीं बनाई जा सकती थी ? बनाई जा सकती थी . पर उन ग्राम प्रधानों और अध्यापको का क्या होता जो मिड डे मिल के दाने से ही अपना पेट भर रहे हैं . इनके इस दलाली पण और धोखाधड़ी के चलते ही निचले तबके के लोग भी स्कूल नहीं भेजते अपने बच्चों को ...  क्या कभी सोंचा गया .....?

                                                बात राष्ट्रीय शिक्षक दिवस की 

निरक्षरों को साक्षर बनाये कौन , माता-पिता या अध्यापक ?माता - पिता तो अपनी भूमिका अदा कर देते हैं . नहला दुला कर भेज देते हैं . खाने की चिंता भी नहीं रही पर जिस स्कूल में वे आते हैं , जिनके आश्रय में उनको रखा जाता है , वह अध्यापक ही तो है ? आखिर उसकी कमी कौन पूरा करे ? कई स्कूल तो ऐसे हैं जहाँ पर एक भी अध्यापक नहीं है . विद्यार्थी ही शिक्षक है विद्यार्थी ही शिक्षार्थी . कितने विद्यालय इस तरीके के भी हैं जहाँ अभी तक आवास की उपलब्धता नहीं हो सकी है और एक अध्यापक के सर पर ३००-४०० बच्चों को ठोका जा रहा है . क्या यह बात समझा जा सकता है कि अध्यापक भी आम लोगों की तरह एक आम इन्सान ही है ना कि कोई जादूगर या भगवान जो इतनी बड़ी संख्या को पढ़ा सके . 


                        स्पष्ट है कि ना तो वह पढ़ा सकता है और ना ही  तो उन्हें अपने कंट्रोल में ही रख सकता है . जमाना भी वह नहीं है कि मार  पीट दे किसी बच्चे को और उसके डर से सहमें रहे सभी , क्योंकि कानून के दायरे में अब एक बात और आनें वाली है ''न तो अध्यापक बच्चे को चाटा मार सकता है और ना ही तो उन्हें मुर्गा ही बना सकता है (दैनिक जागरण) मतलब अब वह एक ही कार्य कर सकता है कि एक डंडी लेकर भेड़ चरवाहों की तरह बैठा रहे और इशारे से सिर्फ उसे निर्देशित करता रहे . कहीं वह भेड़ बहंक जाए . किसी का कुछ नुकसान कर दे मार वह चरवाह ही खाए . उसकी दशा पर रोने वाला कोई नही . वेतन के रूप में तनख्वाह जो पा रहा है . सांसदों की तनख्वाह बढ़ाई जा रही है . विधायकों की तनख्वाह बधाई जा रही है . कहीं कोई कुछ भोलने वाला नहीं . फिर अध्यापकों के वेतन पर इतनीं बड़ी आपत्ति क्यों ? वह जो आठ घंटे बड़ी मशक्क्कत करता है , ३००-४०० बच्चों के बीच माथा-पच्ची करता है . स्वयं के स्तित्त्व को भुलाकर बच्चों के व्यवहार को वरण करता है , क्या कभी उसकी परेसनियों मजबूरियों और दिक्कतों को समझा गया ? अगर समझा भी गया तो क्या अध्यापको की नियुक्तियों को बढाया नहीं जा सकता ? क्या हिंदुस्तान में स्नातकों की कमी है ? ? बी एड धारको की कमी है या फिर वे मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं ? स्नातक हैं  . बी एड धारक हैं . सक्षम हैं मानसिक रूप से वे पर अध्यापकी करने के लिए पुलिसों की लाठी खाने के लिए . जेल जाने के लिए . दौड़ा दौड़ा कर पीते जाने के लिए .   
                  
                         आखिर यह विडंबना ही तो है , दुर्भाग्य ही तो है देश का कि एक तरफ अध्यापकों की व्यापक कमी है और दूसरी तरफ प्रशिक्षित डिग्री धारक , प्राइवेट अध्यापक दौड़ा दौड़ा कर पीटे जा रहे हैं सडकों पर . फिर शिक्षक दिवस किस बात का ? क्या गिने चुने व्यक्तियों को राष्ट्रीय पुरस्कार दे देना ही शिक्षक दिवस है ? यदि ऐसा है तो क्या इसे राजनीतिक दांव नहीं कहा जा सकता ? सबको अँधेरे में रखकर एक को उजाला देना या सभी को भूखे रखकर एक को खीर खिलाना राजनीती नही तो आखिर क्या है ? इस राजनीतिक सोंच को बदलना होगा . परिवर्तित करना होगा उनको अपने इरादों को . ''सभी पढो , सभी बढ़ो '' के सपने को साकार भी तभी किया जा सकता है . क्यों कि कोई अध्यापक अपने स्तित्त्व को बेंच नहीं सकता . हर एक राजनीतिज्ञों की तरंह वे 'बिन पेन के लोटा ' नहीं होते हैं . उनका अपना एक सम्माननीय स्तर होता है . एक स्तित्त्व होता है. और ऐसी जगंह पर भारतीय राष्ट्रपति जी को उन अध्यापको से रोज स्कूल आने और शिक्षण कार्य जरी रखने की शिक्षा देने से ज्यादा बेहतर होगा कि अपने ही राजनीतिज्ञों के नेक नशीहत दें ताकि उनकी नज़रों में भी ''अध्यापकी '' की सार्थकता हो , और कम से कम अध्यापकों और शिक्षको के पक्ष में जो निर्णय लें उसका कोई निहितार्थ निकले . .......

                             

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