गुरुवार, 27 मार्च 2008

कहानी सुहानी

मैनें तो सोंचा था शायेद

कुछ सुनोंगे मेरी भी बातें

होता कैसे दिन गलियों मी मेरे

वितती हैं कैसे ये रातें

किस तरंह से जीते हैं वासी यहाँ के

खाते हैं क्या वो पीते

कब कैसे बीत जाते हैं पल

किस किस के ताने बाने सुनते

मिलती कौन उन्हें सावन बूँद - सम

सताती समेटे गमांचल में अपनें

खिलती फूलों में कैसे कलियाँ काटों की

दिखने लगते हैं जब बेगानों से अपनें

है कहानी सुहानी दिलचस्प जुबानी यहाँ की

मिलो कभी फुरसत में तो बैठ सुनाएँ

बातें करेंगे अनिल (हवा) से गोधूली बेला में

तब दिखा करेंगे रंग जागरण में दहकते ................. ।

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

भाई मेरे, थोड़ा वर्तनी पर ध्यान दो..छापने के पहले एक बार प्रीव्यू मे पढ़ो..कोई मदद चाहिये तो बताओ..हम हैं न!!

भाव तो बहुत उम्दा है..बस, वर्तनी उन्हें दमित कर रही है. भगाओ उसे!!

anilpandey ने कहा…

श्रीमान, वर्तनी से क्या तात्पर्य है, थोड़ा कम समझ आया । कृपया विस्तार से कुछ कहें इसके विषय में !