रविवार, 8 फ़रवरी 2009

कहता हूँ कुछ कहनें ही दो ...........

रोता हूँ रोने ही दो
खोता हूँ खोने ही दो
ना दे सको ऐ दुनिया वालो
कहता हूँ कुछ कहने ही दो

रोटी की कमी रहती है मुझे
पानी की किल्लत यहाँ नहीं
है मुशीबतें इफराद मेरी दुनिया में
चाहिए मुझे क्या और भला
इस दुनिया में ही रहनें दो

आंखों में आंसू आशाओं के
चाहती हैं आज ही बह जाना
चाहिए नहीं तुम्हारी वह सुख की दुनिया
कृपा करो और ,
निराशाओं में ही मुझको पालनें दो

पलने दो भूखे प्यासे
गम नहीं आंधी तूफ़ान से
रेह धूल दूब माटी है
काँटों की झुरमुट और मकरी की जाली
दीवाल ईंट की नहीं तो क्या
झुरमुट में ही जीनें दो ॥

2 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

क्या खूब कहा है ......कुछ कहता हूँ कुछ कहने ही दो ..

अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

The Campus News ने कहा…

aise kaise kahne hi denge mere yar. mai tumhen aise akele nahi chhod sakta hun janab