शनिवार, 3 जुलाई 2010

सरस्वती वंदना - ऐसा वर दो

छोड़ मातु पिता गुरु साथ चले तव खोजन में माँ सरस्वती
एक आश बड़ा विश्वाश भरा मम पूरा करो माँ सरस्वती
हे वीणापाणिं वीणा वादिनी हम आज तुम्हारे शरणों में
दर दर भटका कुछ मिला नहीं अब ध्यान तुम्हारे चरणों में ॥

इतना सा बस किरपा कर दो हो सर ऊंचा ऐसा वर दो
अज्ञान हरण हो ज्ञान महा दुर्बुद्धि में ऐसा सुध भर दो
औरों की चाह नहीं मुझको बस नाम तुम्हारा अधरों में
पर -कार्यन में मन रमा रहे रहे निरत सदा शुभ कर्मो में ॥

धन की कुछ चाह नही मुझको नहीं शौक किसी सुख साधन की
नहीं अभिलाषा मणि -महलों में रहूँ पर क्षमता दो दुःख भाजन की
वीणा की जो नव सुर हो ''अनिल'' वह सुर फैले हर नगरों में
हो शीतल तेज प्रकाशित मन विचलित नहीं भौतिक लहरों में ॥

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