गुरुवार, 1 जुलाई 2010

वो बस एक कल्पना भर थी .....

हुए जो दूर तो
नजदीकियों की एक चाहत ने
आवाज दिया धीरे से
खामोश हो सुनता रहा
मजबूरी की दबिस में
मन ही मन घुटता रहा
मह्शूश किया तपिश
आत्मा की
और एक कदम बढाया
आशाओं की एक आहट ने
स्वागत किया धीरे से
पास आये , थे जो दूर
किया मैं उनको इस कदर मजबूर
क्या हुआ की
वो बस एक
कल्पना भर थी ...... ।

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