गुरुवार, 1 जुलाई 2010

शायद भारतीय और भारतीयता को गाली देना ही कुछ लोगों का विशेष ''इरादा'' हो गया है ... .

ये इश्क बड़ा बेदर्दी है '' जो सिर्फ उसे ही नहीं ''रात दिन जगाये '' जो इसके गिरफ्त में आये बल्कि अब यह उन लोगों के लिए भी गले की फास होती जा रही है जो ''इश्क के इन दीवानों '' के बीच में आते हैं और 'सामाजिक प्रतिष्ठा'या पारिवारिक मर्यादा ' अथवा सभ्य समाज का हवाला देकर उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं । जबकि वे करते तो एक प्रकार से ठीक ही हैं क्योंकि प्रेमी जोड़ों का इस प्रकार से स्तित्व में आना न सिर्फ अनैतिकता को निमंत्रण देना है अपितु आधुनिकता के वातावरण में आदिमान्वी प्रवृत्ति को पोषना भी है । पर इनके इस उद्दघोष के आगे की '' जब जब प्यार का पहरा हुआ है प्यार और भी गहरा हुआ है ''या '' प्यार में जियेंगे या मर जायेंगे '' अथवा ''प्यार करने वाले किसी से डरते नहीं '', उनकी सभी उक्तियाँ बेजान सी दिखाई देनें लगी हैं ।

तब ऐसी अवस्थामें खाप पंचायतें वोट बैंक हैं ,ग्रामीण परिवेश मूर्ख है ,पारंपरिक भारतीय समाज गधों का समाज है जो सिर्फ और सिर्फ भेडचाल करना जानती है । जो ना तो किसी के स्तित्व को समझती है और ना ही तो सभ्यता के आगे सम्बंधित 'संवेदना' को मान्यता देती है ।

तो क्या उन प्रेमी जोड़ों के स्तित्व को स्वीकार कर लिया जय । १०-१५ वर्ष तक के लडके लडकियों को प्रेम करने की खुली छूट दे दी जय ? खुली छूट जिसमें लडके लडकियाँ खुले तौर पर कहीं भी , किसी भी जगंह , बाहों में बाँहें डाले , होठ से होठ सताए , निर्वस्त्र, नंगे , कुत्तों और जानवरों की तरंह सडको पर , गलियों में , अथवा अन्य किसी भी सार्वजनिक स्थल पर ,जिस्मानी सम्बंध बनाए और लोग देखते रहे ? और फिर क्या इस बात की कल्पना की जा सकती है की लोग सिर्फ देखेंगे ही ? क्या वे भी इसी रंग में नहीं रंग जायेंगे ? तब ऐसी स्थिति में क्या दशा होगी भारतीयता की अथवा उस भारतीय समाज की जो आदर्श्ता, नैतिकता और संयम जैसे नीव पर आधारित है ?

फिर तो भाई-बहन , माता -भाभी आदि रिश्तों का कोई सवाल ही नहीं रह जाता , स्तित्व ही नहीं रह जाता यहाँ पर । जहां पर इश्क ही सब कुछ समझ लिया जाय, प्रेम ही सब कुछ मान लिया जाय ,अथवा जान लिया जाय मुहोब्बत को ही सब कुछ वहाँ पर तब रिश्ते नाम की क्या कोई चीज रह जायेगी ?आखिर एन जी ओ ,' चाहती तो यही है की 'प्रेमी जोड़ों को कानूनी सुरक्षा दी जाय', 'प्रत्येक जिले में कानूनी कार्यालय बनाई जाय।' ' उनके लिए दंड का प्रावधान किया जाय जो इनके विरोध में खड़े होते है अड़े होते हैं उनको सामाजिकता का बोध कराने के लिए ''।

क्यों ? आखिर ऐसा क्यों ? समझ नहीं आता की ये किसी विशेष अधिकार की मांग है या एक विशेष प्रकार का पागलपन जो कभी प्रेम की स्वतंत्रता के प्रति उमड़ता है तो कभी वेश्यावृत्ति को कानूनी जामा पहनाने के प्रति । फिर एक सभ्य समाज पर इन कानूनों का क्या असर पड़ेगा क्या इसके भी विषयों पर कभी सोंचा गया ? जहां तक मेरा ख्याल है तो भारतीय और भारतीयता को गाली देना ही कुछ लोगों का विशेष इरादा हो गया है .... ।

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