गुरुवार, 15 मार्च 2012

मेरा भी मन है चंचल है युवा है ,

क्यों चिढ गये

नाराज क्यों हो गये मुझसे

परंपरा को वहन नहीं करना था

नहीं किया हमने

लीक से हटकर

न सिमटकर बचपना तक

युवापन का मार्ग वरण किया हमने

बुरा क्या किया ?


रोज ही तो चला था

माना था अभी तक कहा तुम्हारा

आज नहीं चला उस मार्ग पर

लगा कोई और रास्ता प्यारा

काट लिया क्यों दुखी हो मुझसे किनारा


बड़े हो गये हैं पैर

शरीर भी युवापन का है

चाहता है कर आये सैर

खेतों के पगडंडियों पर

मेड़ों, दान्दों और नालियों पर

चलते चलते ऊब गया था मन

चलना चाहा सड़कों पर




नाराज क्यों  हो गये मुझसे  

कितने दिन डरेंगे

गाड़ी मोटर कारों से

और कितने दिन तक आखिर

खड़े रहेंगे बच्चों के कतारों में

कभी तो समझ लेने दीजिए

होने दीजिये मुलाकात

दुनिया के रंग विरंगे बाजारों से

मेरा भी मन है / चंचल है

युवा है ,

भरा पूरा तन है

इसके भी इंतजार में

कहीं खड़ा कोई मुस्कुराता जन है

मिलने भी दीजिए उससे भी

जान भी लेने दीजिए उसको भी


और नहीं रहा जाता

आदर्श वादिता में चिपके

शौक होता है

देश दुनिया को

समझने का मुझको भी

क्यों नाराज हो गये

नाराज क्यों हो गये मुझसे

आखिर यही तो रस्ते थे

जो कभी मिले थे तुमको भी .....  

कोई टिप्पणी नहीं: