सत्ता पर काबिज पूज्य जनों
फूलो फलो और महान बनो
गया चला वह साल पुराना
इन नये दिनों की शान बनो
क्या हुआ मुम्बई काँप गयी तो
सब सैन्य व्यवस्था हांफ गयी तो
शाशन की गीला गपाली में
दुनिया कमजोरी भांप गयी तो
लथपथ खून से यह धरती
वरण पाप मार्ग को करती
पढ़ते पढ़ते नैतिकता की नियमावली
मानवीयता सारी चिग्घाड़ उठी तो
यह मान चलो तुम बहरे हो
अब हम अनधन की जान बनो ।।
ऐसा भी तुम पहले हमलो में
कुछ और नया क्या करते थे
मरते थे सिपाही गोली खाकर
ख़ुद होटल में बैठ डकारते थे
हाँ , पहुंचते दूसरे देशों में
उबले हुए बेजान आवेशों में
वाद-विवाद कर आतंकवाद पर
झूठी सांत्वना दंगा फसाद पर
अच्छा तुम्हारे एजेंडे में नहीं तो
बुरे कर्तव्यों की पहचान बनो । ।
वर्षांत पर हम करते हैं प्रण
देश की खातिर तन-मन -धन अर्पण
करेगा दुह्साहस गर कभी आतंकी मन
तो जाग उठेगा सारा विश्व संगठन
जगंह जगंह से चीत्कार उठेगा
हिंदुस्तान हुंकार भरेगा
जल उठेगा सारा पाकिस्तान
करते हैं हम फ़िर से आह्वान
पहले आह्वान से देश बटा था
अब विश्व बँटवारे का संधान बनो ।।
बनो बनो कुछ और बनो
इतने से क्या काम चलेगा
उगता सूरज डूबेगा नहीं तो
कैसे नया चाँद निकलेगा
तब तो हिंदू-मुस्लिम जड़ थी
उस पर सबकी गहरी पकड थी
जिधर भी देखो नारे लगे थे
जगंह जगंह हत्यारे खड़े थे
गांधी - शास्त्री तो बन न सकोगे
जिन्नाह - जवाहरलाल बनो
गया चला वह साल पुराना
इन नये दिनों की शान बनो ।।