शुक्रवार, 22 अगस्त 2008

कलयुग महिमा ......

है युग कलयुग नाम अपारा । सुमिरत भागत सुख संसारा ॥

जौ केहु चाह सदा लड़खड़ाना । कलयुग नाम जपहूँ प्रभु जाना ॥

बिन कलयुग के झगड़ा ना होई । मूरख गदहा दलिद्र कह सोयी ।.

अन्दर सास पतोहू के रहता । करत रहत सबके मुंह भरता ॥

बेटवा बोलै जौ गुस्साई । मेहर खीझि के चिमटा चलाई ।।

आवै बीच जे झगड़ा छुड़ावै । आखें चार के अपजस पावै ॥

कलयुग नाम सुखम् सुख हारी । तां जनता सब रहै दुखारी ॥

गली नगर बाजार दुवारी । जंह देखा तंह कलयुग भारी ॥

डालहुं नजर तनी लड़किन पर । कलयुग झलकत हर आत्मन तर ॥

पहिन ब्रीफ और केश झुलाई । देत अहैं सेफ्टी कै दुहाई ॥

पाछे कुत्ता लाखन दौडें । रहि रहि यौवन देखि के घिउरें ॥

जस अपजस लागत नहीं देरी । सैंडल रक्षा करै घनेरी ॥

जैसे सैंडल लडकी उडावई । सब लडिकन तब भाग्य अजमावई ॥

यह सब कलयुग की मनुसाई । लडकी लड़का दिखै इक छाईं ॥

बाल रखाई औ मूछ मुडाई । लगै सदा हिजड़ा सम भाई ॥

वहीँ पर पौडर वा होठलाली । देखि समाज देइ सब गाली ॥

पर गारी के शोक ना होई । कलयुग कहै डरो नहीं कोई ॥

एक दिन दुइ चर झापड़ पड़ता । सब किहें तब करता धरता ॥

अगलेन दिन बस जेल दुवारी । जल्दिन होइबा बेस्ट भिखारी ॥

हमरे रहे कुछ चिंता नाहीं । रहबे देत बबूल के छाहीं ॥

2 टिप्‍पणियां:

Rakesh Kaushik ने कहा…

it's really lovely
kya vyang ksa hai aap ne

bahut achche

rakesh kaushik

pallavi trivedi ने कहा…

waah...bahut achchja likha.